Friday 16 March 2012

राम अवतार बाबू

दयानंद पांडेय 

राम अवतार बाबू बिलकुल निराले किसिम के आदमी थे। वह जब पढ़ते थे तब भी बहुत अलग-अलग से रहते थे। उनका ज्यादातर समय तालाब के किनारे, बाग में या गाय भैंसों के बीच गुजरता था। लगता था जैसे मानव संसार से उनका कोई रिश्ता नहीं था। पढ़ने लिखने में वह औसत ही थे। लेकिन कभी किसी क्लास में फेल नहीं हुए। कद उनका छोटा जरूर था और काया दुबली पतली लेकिन सोचने-समझने में वह लोगों पर अकसर बीस पड़ते थे। बातें वह बहुत कम करते लेकिन जब करते तो बिलकुल किसी क्रांतिकारी की तरह। उनके मन में सुलगती आग लगता जैसे पूरा शहर जला देगी। लेकिन हिंसा उन्हें छूती तक नहीं थी। वह जब यूनिवर्सिटी जाने लगे तो जैसे और लड़के, सिनेमा या लड़कियों की ओर मुखातिब होते, वह ऐसा भी कुछ नहीं करते। रास्ते चलते भी वह लोगों की ओर कम देखते। लेकिन उन्हें कोई गाय, कोई कुत्ता, कोई बकरी मिल जाए तो उसे जरूर पुचकार लेते। और यदि यह सब भी न मिलें तो वह किसी पेड़ या पौधे को देख कर मुसकुरा लेते। अजब ही थे राम अवतार बाबू। पढ़ाई ख़त्म करते-करते उन्हें छोटी-सी नौकरी मिल गई। एक सरकारी विभाग में बाबू हो गए थे। दफ्तर में भी वह किसी से ज्यादा बातचीत नहीं करते थे। घर में भी वह घर के तोते से ही बात करते। खाना या और जरूरत की कोई चीज वह शायद ही किसी से मांगते। अकसर बिन मांगे उनकी मां, भाभी या बहन उनके समय पर उन्हें खाना दे देतीं। और वह बिन बोले चुपचाप खाना खा कर घर से निकल लेते। नौकरी लगने के बाद उनकी शादी के रिश्ते आने लगे। देख समझ कर उनके पिता ने दो एक जगह बात चलाई। तब राम अवतार बाबू ने बिन बोले ही हाथ हिला कर मना कर दिया। उनके पिता नाराज हो गए और मां दुखी। लेकिन पिता की नाराजगी और मां का दुख भी उनके फैसले को नहीं बदल सका।

अब वह शहर के एक मंदिर में जाने लगे। वह घंटों निःशब्द बैठे रहते। कोई कहता राम अवतार बाबू सधुआ गए हैं, कोई कहता कायर हैं तो कोई पगलेट बताता। लेकिन राम अवतार बाबू को इन सबकी फिकर नहीं थी। वह तो अपनी ही दुनिया में मगन थे। अपने मुहल्ले की एक बकरी से उनकी दोस्ती हो गई। वह उससे हंस-हंस कर बोलते-बतियाते। वह बकरी भी उन्हें दूर से देख कर ही छलांग लगाती। अचानक उनकी जिंदगी में दो कुत्ते भी आए। ये कुत्ते उन्हों ने कहीं से ख़रीदे नहीं थे। शहर ही के थे ये कुत्ते। बकरी तो अपने मालिक के घर जा कर सोती लेकिन ये कुत्ते पहले राम अवतार बाबू के दरवाजे पर सोते थे। बाद में धीरे-धीरे इन कुत्तों का प्रवेश राम अवतार बाबू के कमरे तक हो गया। बाद में वह इनकी चारपाई के इर्द-गिर्द ही सो जाते। इन कुत्तों में भी अजीब परिवर्तन आ गए थे। वैसे तो और किसी को देख कर वह कुत्ते भौंकते लेकिन राम अवतार बाबू को देखते ही वह निःशब्द हो जाते। सिर्फ दुम हिलाते और जीभ निकाल कर उन्हें चाटने लगते। मुहल्ले में ही क्या अब शहर में भी राम अवतार बाबू और इन कुत्तों की मौन भाषा मशहूर हो गई थी।

राम अवतार बाबू ने अब तक स्कूटर भी ख़रीद लिया था। सो अब वह साइकिल के बजाय स्कूटर से ही चलते। कई बार अद्भुत नजारा होता। राम अवतार बाबू स्कूटर से चलते तो एक कुत्ता उनकी पिछली सीट पर बैठ जाता ठीक वैसे ही जैसे एच. एम. वी. के रिकार्डों पर हिज मास्टर वायस वाला कुत्ता बैठा रहता था। जब कि दूसरा कुत्ता जो जाहिर है पहले कुत्ते से उम्र में थोड़ा छोटा था और भोला भी, वह बिलकुल किसी छोटे बच्चे की तरह स्कूटर का हैंडिल पकड़ कर आगे खड़ा हो जाता। हालां कि ऐसे मौके कम आते लेकिन जब आते तो लोग बड़े रश्क और शौक से देखते।

राम अवतार बाबू के ऐसे दोस्तों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही थी। तोता उनके घर में पहले से ही था। अब कुछ कबूतर और बतख भी उन्होंने पाल लिए थे। शौक उनका बढ़ता ही गया। घर के पिछवाड़े गड्ढा खोद कर मछलियां भी पाल लीं। एक बिल्ली भी उनकी हमसफर बन चुकी थी। उन मछलियों को यह बिल्ली तो नहीं खाती, न ही उनके कुत्ते और न ही उनके बतख लेकिन अकसर उनका गड्ढा मछलियों से ख़ाली हो जाता। क्यों कि मुहल्ले के कुछ लड़के उनके पीछे पड़ गए थे और यह मछलियां उनके गड्ढे से निकाल लेते थे। लेकिन राम अवतार बाबू फिर कुछ मछलियां उस गड्ढे में ला कर डाल देते। उनका घर अब एक अजायब घर बन चुका था। आजिज आ कर उनके पिता और भाइयों ने उन्हें घर का एक हिस्सा दे कर अलग कर दिया था। शुरू में उनका खाना उनकी मां बना देती थीं। मां के निधन के बाद फिर से उनकी शादी की बात चलाई गई। लेकिन राम अवतार बाबू ने बिन बोले ही सिर हिला कर फिर मना कर दिया।

यह भी अजब ही था कि राम अवतार बाबू के घर में या ‘परिवार’ में तोता, कबूतर, बतख, मछली, कुत्ता, बिल्ली, सांड, ऐसे रहते गोया एक दूसरे को कितनी अच्छी तरह वे जानते हों। और सब लगभग साथ रहते थे। एक तोता भर पिंजड़े में रहता था बाकी सब निरापद, स्वच्छंद। राम अवतार बाबू जब खटिया पर सोते तो वहीं पास में सोफे पर कहीं कबूतर, बतख और बिल्ली भी सो जाते। नीचे फर्श पर कुत्ते और सांड़। और सबके सब बिन बोले निःशब्द। इन सबका भाईचारा देखते बनता था। राम अवतार बाबू को अपने खाने की इतनी फिकर नहीं रहती जितना अपने ‘परिवारीजनों’ की। खाना बनाने के लिए उन्होंने एक नौकर रखा था और जो खाना वह खुद खाते वही खाना अपने ‘परिवारीजनों’ को भी खिलाते। हां कभी-कभी अपने दुलारे कुत्तों के लिए बेईमानी भी कर जाते और उनके लिए मांसाहारी खाना बनवाते। इतना ही नहीं वह जब भी किसी दावत में जाते तो अपने परिवारीजनों के लिए खाना तो नहीं ला पाते लेकिन इन कुत्तों के लिए उस दावत में से मुर्गे या गोश्त की हड्डियां जरूर बांध कर लाते। तो यह कुत्ते भी राम अवतार बाबू और उनके घर की सुरक्षा में कोई कसर न छोड़ते। एक बार तो राम अवतार बाबू के घर से कोई फर्लांग भर दूर उनके स्कूटर को किसी कार वाले ने टक्कर मार दिया। राम अवतार बाबू को कस के चोट लगी। वह जोर से चीख़े और उनका स्कूटर गिर पड़ा। साथ ही राम अवतार बाबू स्कूटर के नीचे दब गए। वह अभी कुछ समझते कि उनके ये दोनों कुत्ते आनन-फानन जाने कहां से सूंघते-सूंघते दौड़ कर उनके पास पहुंच गए। एक कुत्ते ने राम अवतार बाबू की सुधि ली और दूसरे ने लपक कर कार वाले को पकड़ लिया। कार वाले ने बड़ी कोशिश की छुड़ाने की लेकिन कुत्ते ने छोड़ा नहीं और दूसरे कुत्ते ने भौंक-भौंक कर लोगों को राम अवतार बाबू के पास बुला लिया। लोगों ने राम अवतार बाबू के स्कूटर और राम अवतार बाबू को उठा कर खड़ा किया। राम अवतार बाबू ने दूसरे कुत्ते से कार वाले को छोड़ने को जब कहा तभी उसने छोड़ा। फिर राम अवतार बाबू के स्कूटर पर बैठ कर दोनों कुत्ते घर आ गए। दुर्घटना की ख़बर सुन कर अगल-बगल के लोग देखने आ गए। लेकिन जैसी कुशलक्षेम उनके गाय, सांड़, बतख, कबूतर और तोते ने पूछी, कोई नहीं पूछ पाया। राम अवतार बाबू के ‘परिवारीजनों’ ने जिस प्रकार हाल किया, वह उनके पड़ोसियों के लिए भी विस्मयकारी था।

विस्मयकारी ही था राम अवतार बाबू का उम्र के इस चौथेपन में अचानक विवाह करना। नहीं, उन्होंने कोई प्रेम विवाह नहीं किया। टोटली अरेंज्ड मैरिज किया। तो भी विवाह समारोह में उनके अधेड़ होने की चर्चा ज्यादा नहीं चली। चेहरे-मोहरे, कद-काठी से वह अधेड़ लगते भी नहीं थे। छरहरे बदन वाले राम अवतार बाबू की देह में समाई फुर्ती उन्हें अधेड़ दीखने भी नहीं देती। रही बात सफेद हो रहे सिर के छिटपुट बालों की तो उसे उन्होंने डाई करवा लिया था। लेकिन चर्चा इस बात की भी नहीं चली। चर्चा चली तो राम अवतार बाबू की शादी में प्रदेश सरकार में एक कैबिनेट मंत्री के आमद की। यह कैबिनेट मंत्री राम अवतार बाबू के क्लासफेलो थे और राजनीति में जाने और फिर मंत्री बनने के बाद भी राम अवतार बाबू और उनका याराना जस का तस का बना रहा। सो मंत्री जी याराना निभाने न सिर्फ राम अवतार बाबू की शादी में शरीक हुए बल्कि जब तक शादी संपन्न नहीं हो गई तब तक जमे रहे और बतौर सहबाला चुहुल भी करते रहे। ख़ैर, शादी हुई और देर से सही राम अवतार बाबू गृहस्थ जीवन में आ गए। उनके संगी-साथियों को ले कर शुरू-शुरू में उनकी पत्नी को अड़चन हुई, इस को ले कर दोनों में अनबन भी हुई पर बात धीरे-धीरे पटरी पर आ गई। लेकिन इस सबके बावजूद जाने क्यों उनके दांपत्य में निखार नहीं आया। उनकी पत्नी की कोख हरी नहीं हुई। राम अवतार बाबू ने इसके लिए कोई ख़ास कोशिश भी नहीं की पर उनकी पत्नी ने पूजा-पाठ, दवा-दारू सब की। बात जांच-वांच तक पहुंची। राम अवतार बाबू की भी जांच की बात चली तो उन्होंने इसे सिरे से टाल दिया।

कहा कि, ‘कोई जरूरत नहीं है।’ पत्नी ने प्रतिवाद किया। बोलीं, ‘पर बिना बच्चे के जिंदगी कैसे बीतेगी ? बुढ़ापा कैसे कटेगा ?’

‘क्यों? यह सब क्या हैं ?’ राम अवतार बाबू ने अपने संगी साथी तोता, बिल्ली, कुत्ता, सांड़, बतख, गाय, मछली के झुंड की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘हमारे बाल बच्चे ही तो हैं !’

‘बाल बच्चे हैं कि शंकर जी की बारात हैं !’ कह कर उनकी पत्नी मायूस हो गईं। रूठने के अंदाज में उठ खड़ी हो गईं।

कुछ दिन बाद कोई बच्चा गोद लेने की बात चलाई पत्नी ने, पर राम अवतार बाबू यह बात भी टाल गए। दिल टूट गया राम अवतार बाबू की पत्नी का। रही बात राम अवतार बाबू की तो वह अपने कुत्ते, बतखों और नौकरी में समाये रहते। पत्नी के लिए भी उनके पास कम ही समय होता। लेकिन समय का बदलता मोड़ जैसे उनकी राह देख रहा था। उनके मिनिस्टर दोस्त का भाग्य पलटा और वह चीफ मिनिस्टर हो गए। उनके शपथ ग्रहण समारोह में शरीक होने वह लखनऊ भी गए और अपने शहर लौटे तो मारे खुशी के राम अवतार बाबू ने क्लर्की की नौकरी से इस्तीफा दे दिया। बोले, ‘अब सामाजिक काम करूंगा !’

‘तो यह शंकर जी की बारात कौन संभालेगा ?’ पत्नी ने आकुल हो कर पूछा।

‘संभालने की जरूरत पड़ी है क्या कभी इन सब को ?’ वह बोले, ‘अरे, यह सब हमें संभालते हैं!’ पत्नी निरुत्तर हो गईं।

कुछ दिन बाद शहर में जब लोगों को पता चला कि राम अवतार बाबू ने नौकरी से इस्तीफा दे दिया है तो लोग चौंके। कुछ लोगों ने राम अवतार बाबू से पूछा भी कि, ‘यह क्या किया ?’
‘क्या किया ?’ वह बोले, ‘अरे, दोस्त मुख्यमंत्री बन गया है।’

‘तो?’

‘तो क्या, अब दोस्त के मातहत हो कर नौकरी करेंगे ?’ राम अवतार बाबू कहते, ‘अब दोस्त के साथ सामाजिक कार्य करेंगे।’

‘पर खर्चा-बर्चा कहां से चलाएंगे ?’

‘बाप दादों की खेती बारी है न?’ वह कहते, ‘क्लर्की की नौकरी से वैसे भी खर्चा कहां चलता था हमारा?’

राम अवतार बाबू सचमुच सामाजिक कामों में लग गए। निःस्वार्थ ! लोगों को, उनकी पत्नी को कुछ क्या ज्यादा अटपटा लगता लेकिन राम अवतार बाबू को किस को क्या लग रहा है इसकी परवाह लगभग नहीं होती। उनकी पत्नी अब अकसर बीमार रहने लगी थीं। लेकिन कुत्ता, बतख, गाय, बिल्ली की तकलीफ समझने वाले, सामाजिक कार्यों में निःस्वार्थ लगे रहने वाले राम अवतार बाबू को पत्नी की बीमारी की परवाह नहीं होती। पत्नी झल्लाती रहतीं, कुढ़ती रहतीं। कहती रहतीं डाक्टर के यहां चलने को। पर राम अवतार बाबू के पास इतना समय कहां होता कि वह पत्नी को डाक्टर के यहां दिखाने ले जाएं ! टालते हुए वह कुछ देसी दवाएं तजबीज करते हुए कहते, ‘कुछ नहीं हुआ, सब ठीक हो जाएगा।’

अजीब थी यह उनकी लापरवाही।

पर पशु-पक्षियों यानी अपने संगी-साथियों के प्रति वह कभी लापरवाह नहीं रहे। इतना ही नहीं उनके क्लासफेलो दोस्त जो अब प्रदेश के मुख्यमंत्री भी बन गए थे, वह भी राम अवतार बाबू के पशु-पक्षी प्रेम की गिरफ्त में आ गए थे। उन्होंने भी अपने बंगले पर पशु-पक्षियों की संख्या बढ़ा दी थी। अब चूंकि वह मुख्यमंत्री थे सो सुविधाएं भी ज्यादा थीं और दो-दो बंगलों में जगह भी सो मुख्यमंत्री के लिए अधिकृत सरकारी बंगले में तो नहीं पर दूसरे वाले सरकारी बंगले में हिरन, खरगोश, सारस यहां तक कि किस्म-किस्म के सांप भी उन्हों ने पाल लिए थे। उन पर कई बार जानवरों को कैद कर कानून तोड़ने का आरोप भी प्रतिपक्ष के छुटभैया नेताओं ने लगाया। पर वह राम अवतार बाबू द्वारा सिखाए गए पशु-प्रेम को छोड़ नहीं पाए। इतना ही नहीं राम अवतार बाबू को मान-सम्मान देने के लिए एक बार तो उन्हें विधान परिषद में चुने जाने की जोड़-तोड़ भी कर ली। उनका नामांकन तक भरवा दिया। पर पार्टी में ही कई लोगों ने सवाल उठा कर बात हाई कमान तक पहुंचा दी। कहा कि पूरे प्रदेश को चिड़ियाघर बना देंगे ये लोग ! विवश हो कर राम अवतार बाबू को नामांकन वापस लेना पड़ा। राजनीति से उन्हें पहले भी कुछ बहुत लेना देना नहीं था पर अब विरक्ति-सी हो गई। हां, समाज सेवा उनकी जारी रही। वैसे भी बाद में उनके दोस्त को राजनीतिक उठा-पटक के चलते मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ गया। पर जल्दी ही उन्हें केद्रीय मंत्रिमंडल में जगह मिल गई। बतौर केद्रीय मंत्री वह पेरिस में आयोजित एक कांफ्रेंस में हिस्सा लेने गए। वहीं उनका स्वास्थ्य इतना बिगड़ गया कि निधन भी हो गया। यह ख़बर सुन कर राम अवतार बाबू बहुत रोए। कहने लगे, ‘बताइए, दुनिया भर की बेटियों की शादी के लिए अनुदान देते रहे और अपनी ही बेटियों की शादी किए बिना गुजर गए!’ ख़ैर, राम अवतार बाबू मित्रा की अंत्येष्टि में शामिल हुए और बाद में उनकी एक बेटी की शादी में भी। फिर उन्हों ने राजनीति की ओर मुड़ कर नहीं देखा। पर सामाजिक कार्यों में वह जरूर लगे रहे।

राम अवतार बाबू के साथ अब एक और समस्या घर कर गई थी। समाज सुधार करते-करते वह कुछ पियक्कड़ टाइप के समाज सुधारकों की संगत में आ गए। शुरू-शुरू में कभी-कभी पर बाद में लगभग नियमित पीने लग गए थे वह। रात को भरपेट पीते और सुबह उठते ही नहा धो कर पूजा-पाठ करने लगते। सूर्य देवता को तो कूद-कूद कर नाचते, ताली बजाते वह जल देते। अजब अंतर्विरोध उपज आया था उनमें। लेकिन पशु-पक्षियों के प्रति उनकी संवेदना, उनकी निष्ठा अब भी जस की तस थी। एक रात वह लखनऊ जाने के लिए ट्रेन पकड़ने के लिए रिक्शे से स्टेशन जा रहे थे। पिए हुए थे और साथ में एक स्थानीय नेता भी थे। अचानक एक जगह उन्होंने रिक्शा रुकवाया। साथ के नेता जी ने पूछा भी कि, ‘क्या बात है ?’

‘यह देखिए!’ रिक्शे से उतरते हुए राम अवतार बाबू बोले, ‘यह घायल हो गया है।’ सड़क किनारे घायल पड़े एक सांड़ को इंगित करते हुए वह बोले, ‘यह हमारा ही सांड़ है। कान कटवा कर छोड़ दिया था।’ वह बोले, ‘लगता है किसी ट्रक ने टक्कर मारी है। फिर वह जमीन पर बैठ कर सांड़ की गरदन सहलाने लगे। बोले, ‘बहुत ज्यादा चोट लग गई है।’ वह उसके घाव से बहते खून को देखते हुए बोले, ‘अस्पताल ले जाना पड़ेगा।’

‘लेकिन तब तक तो ट्रेन छूट जाएगी राम अवतार बाबू !’ नेता जी अकुला कर बोले।

‘मैं तो नेता जी अब लखनऊ जा भी कहां पाऊंगा, इसे ऐसे छोड़ कर!’

‘क्या?’

‘हां, अब आप इस रिक्शे से उतरिए और दूसरा रिक्शा खोजिए।’ वह बोले, ‘इस रिक्शे पर मैं इसे अस्पताल ले जा रहा हूं।’

‘अरे, आपको नहीं जाना है तो मत जाइए। हमारी ट्रेन तो मत छुड़वाइए।’ नेता जी बोले, ‘आप दूसरा रिक्शा ले लीजिए।’

‘अब दूसरा रिक्शा इतनी रात क्या जाने कब मिलेगा ?’

‘वही तो !’ नेता जी बोले, ‘मुझे जाने दीजिए। नहीं, ट्रेन छूट जाएगी। बहुत कम समय रह गया है।’

‘क्या झिक-झिक कर रहे हैं तभी से।’ राम अवतार बाबू बोले, ‘अभी ट्रेन छूट जाएगी तो सुबह ट्रेन पकड़ लीजिएगा। लेकिन यह सांड़ अभी मर गया तो सुबह फिर नहीं जी पाएगा।’ वह सांड़ का घाव दिखाते हुए बोले, ‘देखिए कितना खून बह रहा है !’ फिर उन्होंने रिक्शे वाले और नेता जी की मदद से सांड़ को उठा कर रिक्शे पर लादा और उसे जानवरों के अस्पताल ले गए।

नेता जी वहीं सड़क पर अपनी अटैची लिए अकेले रह गए किसी रिक्शे की आस में। अंततः नेता जी की ट्रेन छूट गई पर उस छुट्टा सांड़ को राम अवतार बाबू ने बचा लिया था। सुबह तक वह जानवरों के अस्पताल में ही रहे।

राम अवतार बाबू की हिचकोले खाती जिंदगी ऐसे ही कटती रही कि तभी उनकी पत्नी का स्वास्थ ज्यादा बिगड़ गया। तब राम अवतार बाबू घर क्या, शहर में भी नहीं थे। सांप्रदायिक सद्भावना यात्रा पर निकले हुए थे। पड़ोसियों ने उनकी पत्नी को अस्पताल पहुंचाया और राम अवतार बाबू को पत्नी की अस्वस्थता की ख़बर। सद्भावना यात्रा बीच में छोड़ कर आने को वह तैयार नहीं थे। पर जब पत्नी की ज्यादा अस्वस्थता और अस्पताल मे भर्ती की ख़बर दूसरे दिन दुबारा दी गई तो वह किसी तरह सद्भावना यात्रा बीच में ही छोड़ कर लौटे। अस्पताल गए।

पत्नी की तबीयत सचमुच ज्यादा बिगड़ गई थी राम अवतार बाबू की लापरवाही से। कोई बहुत बड़ी बीमारी नहीं थी लेकिन अब थी लास्ट स्टेज पर, इसलिए बीमारी बड़ी हो गई थी। डाक्टरों ने टी. बी. बताया और कहा कि इसका इलाज शुरू से किया गया होता तो अब तक ठीक हो गया होता। टी. बी. अब कोई बीमारी नहीं रही और साल डेढ़ साल की दवा में ठीक हो जाती है। लेकिन इनको तो कभी कोई दवा दी ही नहीं गई। सो अब भगवान का नाम लीजिए!

राम अवतार बाबू यह सब सुन कर अवाक रह गए। पत्नी उनकी पहले ही से सूख कर कांटा हो गई थीं। अब वह अवसन्न कर देने वाली स्थिति में थीं।

अब राम अवतार बाबू की तारीफ करने वाले भी उन पर थू-थू करने लगे। शहर के ज्यादातर लोगबाग, परिवार और नाते रिश्तेदारी के लोग तो उन्हें पहले ही से पगलेट डिक्लेयर किए हुए थे। ख़ैर, लोक-लाज के डर से ही सही राम अवतार बाबू ने पत्नी इलाज की सुधि ली। पर देरी इतनी हो चुकी थी कि सब कुछ बेकार हो गया था।

अंततः उनकी पत्नी चल बसीं।

अंत्येष्टि में भारी भीड़ थी। सामाजिक कार्यकर्ता होने के कारण राम अवतार बाबू के इस शोक में शहर के सभी तबके के लोग श्मशान घाट पर पहुंचे। हां, उनके तोते, बिल्ली, गाय, बतख तो नहीं पर कुत्ते और उनका छुट्टा सांड़ भी अनायास पहुंचे। कोई उन्हें हांक कर नहीं ले गया था। इस सांड़ और कुत्तों के बहाने श्मशान घाट पर भी राम अवतार बाबू की पगलेटई पर गुपचुप-खुसफुस ही सही टिप्पणियां जारी रहीं। किसिम-किसिम की। कई टिप्पणियां अश्लीलता की हदें भी पार करती रहीं।

राम अवतार बाबू की शाम की महफिल के एक राजनीतिज्ञ मित्र को शाम की महफिल में जब उनकी अनुपस्थिति खटकी तो उन्होंने बाकी लोगों ने पूछा भी कि, ‘‘आज कल राम अवतरवा नहीं दिखाई दे रहा है ?’

‘आपको मालूम नहीं क्या ?’ एक साथी ने अचरज करते हुए पूछा।

‘काहें क्या हो गया ?’

‘अरे, उनकी धर्मपत्नी का आज स्वर्गवास हो गया!’

‘अभागा है !’

‘कौन ?’

‘राम अवतरवा और कौन!’ वह बोले, ‘जवानी भर औरत का सुख नहीं भोगा और अब बुढ़ापे में भी बिना औरत के रंडुओं की तरह भटकेगा। औरत से ‘भेंट’ नहीं होगा। अभागा कहीं का ।’ कह कर वह निर्विकार अपना पेग बनाने लगे।

फिर राम अवतार बाबू के बारे में टिप्पणियों पर टिप्पणियां शुरू हो गईं, जैसे-जैसे शराब चढ़ती गई, टिप्पणियां भी लोगों की बढ़ती गईं। महफिल में शरीक एक नौजवान चिंतक की मुद्रा में आ गया। बोला, ‘पर मेरी समझ में यह नहीं आता कि कुत्ते, बिल्लियों, पशु-पक्षियों के प्रति हद से ज्ष्यादा संवेदनशील रहने वाला व्यक्ति अपनी पत्नी के प्रति इतना संवेदनहीन कैसे हो गया ? कि दवा के अभाव में वह मर गई!’

‘एकदमै पागल हो तुम भी का भई?’ वह राजनीतिज्ञ उस नौजवान से मुखातिब हुए !

‘क्यों इसमें पागलपन की क्या बात है ?’
‘बहुत साफ है!’ वह बोले, ‘तुम राम अवतरवा के बारे में तब कुछ जानते ही नहीं हो। अब मैं बता रहा हूं तुम सब जान लो।’ वह बोले, ‘राम अवतरवा का सारा कमिटमेंट पशु-पक्षियों के साथ है, मनुष्यों के साथ उसका कोई कमिटमेंट है ही नहीं।’

‘क्या मतलब ?’
‘अभी लौंडे हो, तुम नहीं बूझोगे!’ वह बोले, ‘दुनिया बहुत बड़ी है। अभी कुछ देखो समझो फिर बतियाना!’
महफिल यहीं ख़त्म हो गई थी और बात भी। जो भी हो पत्नी की चिकित्सा पर राम अवतार बाबू ने भले ही ध्यान नहीं दिया पर पत्नी के श्राद्ध के दिन भोज में जैसे सारा शहर उन्होंने न्यौत दिया था। और दिलचस्प यह कि आने वालों की अगुवानी भी राम अवतार बाबू के पुराने संगी साथी यानी वही पशु-पक्षी इस विनम्रता और ख़ामोशी से खड़े हो कर रहे थे कि उनका शोक देख बाकी लोगों का शोक और गाढ़ा हो जाता था। सांड़, गाय, कुत्ता, बतख आदि दरवाजे पर लाइन से सिर झुकाए ऐसे खड़े-खड़े आने वाले लोगों को ‘रिसीव’ कर रहे थे और जाने वालों को ‘सी आफ’ कि कई लोगों की हिचकियां बंध गईं। हां, बिल्लियां घर के भीतर थीं। सहमी-सहमी इधर-उधर धीरे-धीरे भटकतीं।
और राम अवतार बाबू ? उनकी चिंता यह थी कि बिना भोजन के किए कोई वापस न जाए। एकाध ख़ास मित्रों को देखते ही वह भरभरा कर रो पड़ते। पर दूसरे ही क्षण वह पलट कर इंतजाम देखने लग जाते। बाल मुड़ाए धोती पहने, थकन से चूर वह फिर भी इधर-उधर भटक रहे थे छटपटाते हुए। दूसरे ही दिन उन्होंने बरसी भी कर दी। छुट्टी मिल गई उन्हें पत्नी के क्रिया-कर्म से। कुछ दिनों तक वह खोए-खोए, सोए-सोए से रहे पर जल्दी ही रुटीन पर आ गए।
हां, अब जब बाल उनके बड़े हुए तो डाई नहीं करवाया उन्होंने। फिर खिचड़ी से दिखने लगे उनके बाल। पर जल्दी ही झक सफेद हो गए। अब उनकी कृश काया पर यह बड़े-बड़े सफेद बाल उन्हें कभी संन्यासी का रंग देते तो कभी वह डरावने लगने लगते।
अब वह शहर भर के लिए डिक्लेयर्ड पगलेट हो गए। बावजूद इस सब के उनका पशु-पक्षी प्रेम और समाज सेवा का काम फिर भी जारी रहा !
और शाम की महफिल भी।

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