Tuesday 12 February 2013

मधु और मिलिंद की नंगी तसवीर की चर्चा के बहाने

मिस इंडिया और मिस यूनिवर्स प्रतियोगिता में उप विजेता रही मनप्रीत बरार कहती है कि, मैं ऐसा पोज नहीं देती। पर प्रसिद्ध मॉडल और पूर्व मिस इंडिया मधु सप्रे ने ऐसा पोज दे दिया है।प्रसिद्ध फ़िल्म पत्रिका सिने ब्लिट्ज और रजी के अंगरेजी संस्करणों में छपा एक जूते का विज्ञापन इन दिनों बंबई में बवाल काटे हुए है। विज्ञापन में छपे चित्र में मधु सप्रे और मॉडल मिलिंद सोमण निर्वस्त्र एक-दूसरे से चिपटे हुए खड़े दिखाए गए हैं। देह पर इन दोनों के वस्त्र भले न हो, पर पैर में जूता और गले में अजगर है। बंबई पुलिस ने इन दोनों पत्रिकाओं को जब्त कर लिया है। जूता कंपनी के मालिकों ने माफी मांग ली है लेकिन विवाद फिर भी थमा नहीं है।
उल्लेखनीय है कि मधु सप्रे एक बार पहले भी इस तरह से न्यूड पोज देने के विवाद में पड़ चुकी हैं। उस बार उन्हों ने सिर्फ सांप लपेट कर लेटे हुए पोज दिया था। पर अब की वह निर्वस्त्र मिलिंद के साथ कमर में हाथ डाले चिपट कर अपने नितंबों का भरपूर प्रदर्शन करती हुई जूता पहने खड़ी हैं। हांला कि इस पूरे प्रसंग पर उन का पक्ष भी आ गया है और उन का कहना है,‘मैं फ़ोटो सेशन में न्यूड नहीं थी,बल्कि मैं ने स्किन कलर के स्टाकिंस पहने हुए थे। जिन हिस्सों के आगे अजगर था,दरअसल उन के पीछे भी वस्त्र थे। हां मेरा कुल्हा ज़रूर खुला था। दूसरी ओर मिलिंद,मधु सप्रे के साथ इस उत्तेजक तसवीर को खिचवाने को गलत नहीं बताते। उन का कहना है कि,मधु और मैं हमपेशा हैं,गहरे दोस्त हैं और जल्दी ही शादी करने वाले हैं। हम लोगों ने साथ-साथ रहना कब का शुरु कर दिया है। अब मिलिंद चाहे जो कहे,हो सकता है कि कुछ दिन बाद वह मधु से शादी भी कर लें।
तो क्या उन को यह अधिकार मिल जाता है कि वह सरे-आम मधु के साथ हमबिस्तरी करने लगें? सवाल उठ गया है और कहा जा रहा है कि भले ही पत्नी हो तो क्या आप उस के साथ सड़क पर सरे-आम सोने लगेंगे। सवाल –जवाब की फेहरिस्त बहुत लंबी है। और यह विवाद जाहिर है कि काफी दिनों तक गरमाया रहेगा। और विवाद गरमाए या न गरमाए उस गरम तसवीर को देख कर जूते का बाज़ार ज़रूर गरम हो गया है।
जूता कंपंनी के कर्ता-धर्ताओं ने माफी भले मांग ली हो,पर उन का मकसद तो पूरा हो ही गया है। अब वह नंगी तसवीर लोग देखें न देखें जूता तो देखेंगे ही। शायद इस तसवीर पर इतना विवाद न होता तो इस विज्ञापन और फिलिक्स शू कंपंनी के टफ जूते को इतना प्रचार तो नहीं मिलता। दरअसल प्रचार पाने का एक बढ़िया रास्ता यही है कि आप विवाद में पड़ जाएं। और इसमें तो जूता कंपंनी के कर्ता-धर्ताओं की चांदी है। क्यों कि जब्त तो सिने पत्रिकाएं हुई हैं,विवाद मिलिंद और मधु के फ़ोटो पर है,टफ जूते पर थोड़े ही है और न ही वह जब्त हुआ है। जूतों को तो भरपूर प्रचार मिल गया है। आप को याद होगा कि बीते दिनों सुभाष घई की मशहूर फ़िल्म खलनायक सुपर-डुपर हुई तो सिर्फ दो बिना पर। एक तो चोली वाला गीत और दूसरे संजय दत्त की गिरफ्तारी। ऐसे ही अभी हाल के दिनों में मणिरत्नम की बांबे फिल्म इस लिए हिट हो गई कि उस में दंगे का विवाद गरमा गया । अरुणा विकास की गहराई में पद्मिनी कोल्हापुरी का न्यूड सीन भी याद ही होगा आप को। दलाल में आयशा जुल्का का दृश्य भी इसी फेहरिस्त में शुमार है।
विज्ञापनों में विवाद का यह सिलसिला कोई नया नहीं है। इस के पहले भी टाटा और कैप्टन कुक नमक के बीच गला काट विज्ञापनबाज़ी का फ़ायदा-नुकसान इन कंपंनियों को मिला ही था। अभी तक इस उपभोक्ता ग्रुप में एक-दूसरे को काटने की जो लत विज्ञापनबाज़ों में पड़ी हुई थी,[मसलन कुछ साबुनों के विज्ञापन में नील न लगाने की सलाह देने पर नील व्यवसायी उठ खड़े हो गए थे।]मधु सप्रे ने इस गला काट लड़ाई को एक नई राह दिखा दी है, उत्तेजक तसवीर परोस कर। ऐसा नहीं है कि विज्ञापनों में औऱतों की देह पहले नहीं परोसी जाती रही हो। यह तो एक रिवाज सा हो गया है चाहे साबुन हो,कपड़ा हो,चाय हो, सिगरेट हो,टीवी हो,वाशिंग मशीन हो,शराब हो,पेय पदार्थ हो या कोई भी चीज हो, औरत की देह हर विज्ञापन में खुले आम परोसी जाती रही है। सच यह है कि लोग विज्ञापन कम औरत ज़्यादा देखते हैं। यहां अशोक आहूजा की फ़िल्म आधारशिला की याद आती है। जिस में फ़िल्म के भीतर एक निर्देशक नसीरुद्दीन शाह संघर्षरत है। उसे काम नहीं मिल रहा तो उस का एक दोस्त उसे विज्ञापन फ़िल्म बनाने का मशवरा देता है और टायर बनाने वाले अपने एक उद्योगपति दोस्त के पास सिफ़ारिश के साथ भेजता है। यह काम तो उसे खैर नहीं मिलता पर जब वह निर्देशक उस उद्योगपति के पास जा रहा होता है तो रास्ते भर मन ही मन टायर विज्ञापन फ़िल्म की कल्पना करता जाता है कि वह इस विज्ञापन फ़िल्म को ऐसे बनाएगा। वह कल्पना करता है कि एक गांव का आदमी अपनी मोटी बीवी को साइकिल पर बिठाए जा रहा होता है कि उस की साइकिल का टायर बर्स्ट कर जाता है और वह अपनी मोटी बीवी और साइकिल को घसीटता हुआ जा रहा होता है। कि तब तक बिकनी पहने एक लड़की साइकिल से गुज़रती है। वह आदमी उस लड़की को घूर-घूर कर देखने लगता है। तो उस की बीवी उसे झिड़कती है कि ‘क्या देख रहे हो’? वह देख तो रहा है लड़की । पर मुंह से बोलता है ‘टायर।’
तो कमोवेश सभी विज्ञपनों का हश्र यही होता है। विज्ञापनदाता जानते हैं कि लड़की या उस की खुली देह देखने के बहाने लोग उस का उत्पादन भी देख लेंगे। तो वह औरत की खुली देह काइस्तेमाल जान-बूझ कर करता है। रही बात नंगी तसवीरों की तो विज्ञापनों में यह कोई नई बात नहीं है। सेक्स क्लीनिक वाले विज्ञापनों में या इस से संबंधित दवाओं के विज्ञापन फ़िल्मों में यह बड़ी आम बात है। जो घर-घर वीडियो या केबिल के मार्फ़त पहुंच रहा है। नहीं अगर विज्ञापनों में औरतों की देह दिखाने का मसला नहीं होता तो आप तमाम साबुन विज्ञापनों की याद करें जिन में खूबसूरत महिलाएं या नायिकाएं कपड़े धोती दिखती हैं तो क्या सचमुच असली जीवन में कपड़े धोती ही होंगी? जाहिर है कि नहीं। असली कपड़ा धोने वालियों को अगर विज्ञापनदाता दिखाएं तो कोई विज्ञापन देखेगा ही नहीं। चलिए कपड़े धोने में तो समझ में आई औरत की देह,साबुन से नहाती हुई औरत की नंगी देह भी समझ में आती है। पर जूता पहने नंगी औरत की देह यहीं एक और जूता विज्ञापन की याद आती है जिस में बच्चे जूता पहनते ही छत पर उलटा चलने लगते थे। इस विज्ञापन पर रोक लगी। तो विज्ञापन तो है ही फंतासी की दुनिया। अब वह नंगी देह में तब्दील हो कर ‘असली दुनिया’ दिखाने में लग गई है तो कोई क्या कर लेगा? 
[१९९५ में लिखा गया लेख]

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