Tuesday 19 February 2013

जो फ़्यूज़न नहीं करते, कनफ़्यूज़न करते हैं : शंकर महादेवन व लुई बैंक्स से बातचीत

शंकर महादेवन का कहना है कि ‘जो फ़्यूज़न नहीं करते, कनफ़्यूज़न करते हैं’। लुई बैंक्स के साथ फ़्यूज़न गाने वाले शंकर महादेवन यह भी कहते हैं कि संगीत कोई बैरियर नहीं रखता और अंततः वह इस बात पर आ जाते हैं कि संगीत को डिसक्राइब नहीं किया जा सकता। शंकर महादेवन से जब यह बातचीत की तब बातचीत के समय लुई बैंक्स भी उपस्थित थे। कई सवालों में जवाब दोनों ने मिल कर दिए। पेश है बातचीतः

आप लोग जो फ़्यूज़न कर रहे हैं गालियां नहीं मिलती?
- अभी तक तो नहीं मिली। सही चीज़ सही ढंग से करने से गालियां नहीं मिलतीं। फिर गालियां क्यों मिलेंगी।

इस लिए कि भारतीय शास्त्रीय संगीत और पाश्चात्य संगीत को एक साथ मिला कर आप लोग पेश कर रहे हैं।
-हम लोग भी सही कर रहे हैं। इट्स ए डिफ़रेंट डायरेक्शन। इंडियन क्लासिक म्यूज़िक मोनोफ़ोनिक है। वन नोट एक सुर में गाया जाता है। मेलोडी चल रहा है तो मेलोडी ही चलेगी। पर वेस्टर्न म्यूज़िक पालीफ़ोनिक है। मतलब फ़ोर नोट आप गा रहे हैं। दिस इज काल्ड जॉज। मिला दिया तो फ़्यूज़न।

फिर भी मिलने की यही एक वज़ह है कि और भी?
- यह भी कि इंडियन क्लासिक में हारमोनी का कंसेप्ट नहीं है। जॉज में हारमोनी कांसेप्ट ज़्यादा है। भारतीय शास्त्रीय संगीत में सुर बैक बोन है पर जॉज की बैक बोन हारमोनी है। पर जैसे जॉज में हारमोनी स्ट्रांग है वैसे ही इंडियन रिद्म स्ट्रांग है। भारतीय शास्त्रीय संगीत में एक साथ ‘नोट’ नहीं गा सकते पर जॉज में गा सकते हैं। जो इन का मिलन होता है।

इन का मिलन कहां-कहां कैसे होता है उदाहरण दे कर बताएंगे?
-जैसे राग यमन जो है जॉज में वैसे ही लीडियन स्केल बन जाता है। नोट्स भी इन के सेम हैं। ऐसे ही राग करहर प्रिया और डोरियन स्केल एक जैसे हैं। इसी तरह राग भूप और टाटोनिक स्केल एक जैसे हैं।

फ़्यूज़न शुरू करने के लिए आप लोगों ने कैसे सोचा?
- इस लिए कि जॉज और क्लासिक में बहुत सारी समानताएं हैं।

आप यह बताइए कि जॉज और इंडियन क्लासिक को एक में मिलाने की बात आप लोग करते तो हैं पर आप लोग भारतीय वाद्यों को इस्तेमाल नहीं करते दीखते। तबला, सारंगी, बांसुरी, ढोल कुछ भी नहीं, जब कि जॉज के सारे इंस्ट्रूमेंट आप पूरे ताम-झाम से लिए फिरते हैं?
-हम करते हैं इन का भी इस्तेमाल। हमारे साथ ज़ाकिर हुसैन तबला बजा चुके हैं। पिकू विनायक रम तथा हरि प्रसाद चौरसिया बांसुरी बजा चुके हैं।

बात देशी परदेशी की नहीं संगीत की है?
-देखिए सभी जगह सब कांसियासली फ़्यूज़न ही हो रहा है। फोकस हर जगह फ़्यूज़न पर ही है।

फिर ‘बरसात’ या ‘हम’ जैसी फ़िल्मों में लुई बैंक्स बैकग्राउंड म्यूज़िक में ही क्यों पूछे गए गानों में क्यों नहीं?
-अब यह हम ठीक नहीं कह सकते। फ़िल्में हमारी या आप की मर्जी से नहीं बनतीं।

पर आप से जब गवाना होता है तो आप को ‘हम से है मुकाबला’ से ले कर ‘सपने’ तक में गवाया जाता है। तो यह क्या है?
-डिटेल्स में क्या जाएं।

नहीं, फिर भी?
-म्यूज़िक को डिसक्राइव नहीं कर सकते।

खास कर फ़्यूज़न को?
- फ़्यूज़न ही नहीं किसी भी म्यूज़िक को।

शायद इस लिए कि बिरजू महाराज जैसे लोग फ़्यूज़न को कनफ़्यूज़न कहते हैं?
-हम लोग कहते हैं कि जो फ़्यूज़न नहीं करते वह कनफ़्यूज़न करते हैं।

[१९९६ में लिया गया इंटरव्यू]

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