एक बार क्या हज़ार बार मान लेते हैं बल्कि निश्चित ही मान लेते हैं कि नरेंद्र मोदी कुछ और नहीं आर एस एस की बिसात पर एक मामूली से मोहरा भर हैं। यह भी मान लेते हैं कि उन का पुराना चेहरा सांप्रदायिकता के कीचड़ में सना हुआ है। गुजरात का नरसंहार भी उन के नाम दर्ज है ही। और कि मोदी ने एक लड़की की जासूसी भी करवाई। यह भी कि अपनी पत्नी यशोदा बेन को परित्यक्ता बना दिया। एक बार क्या हज़ार बार यह भी मान लेते हैं कि मोदी ने मीडिया को भी खरीद लिया है और कि मीडिया को कुत्ता बना लिया है।

तो क्या सिर्फ़ इन कारणों ने ही मोदी को इतना लोकप्रिय बना दिया?

तो मुस्लिम तुष्टीकरण, जातिवादी राजनीति और कांग्रेस के एक वंशीय शासन, सोनिया राहुल के रिमोट से चल रही मनमोहन सरकार के अंतर्विरोध, कमरतोड़ मंहगाई और सुरसा की तरह छाए भ्रष्टाचार ने मोदी को इस तरह खड़ा करने में क्या कोई भूमिका नहीं निभाई? जाने क्यों राजनीतिक टिप्पणीकार और राजनीतिक पार्टियां यह कहने में परहेज कर रहे हैं। पर एक तल्ख सच यह भी है कि मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति ने मोदीे की राजनीति के लिए एक बहुत बड़ी कालीन बिछा दी है। चौतरफ़ा मोदी विरोध ने मोदी को इस कदर अजेय बना कर खड़ा कर दिया है अब मोदी विरोध खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे की कहावत में तब्दील है। कुछ धर्मनिरपेक्ष ताकतों के अति विरोध और लफ़्फ़ाज़ी ने मोदी को वह ताकत दे दी है जो ताकत उन्हें आर एस एस भी नहीं दे पा रहा था। लगभग सभी राजनीतिक पार्टियां, यहां तक खुद भाजपा भी जिस तरह की मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति में लथपथ है, इसी एक राजनीतिक बीमारी ने मोदी को यह कद दे दिया है कि अब मोदी एक राजनीतिक  ही नहीं, एक प्रतिमान बन कर मोदी फ़ोबिया बन चले हैं। क्या भीतर, क्या बाहर तमाम स्पीड ब्रेकर, बैरियर, बाधा और हिच के इस चुनाव में मोदी का कोई दूसरा विकल्प खोजे नहीं मिल रहा।

तो क्यों?

तो क्या भारतीय राजनीति इस कदर बंजर हो गई है?

इस की पड़ताल कोई क्यों नहीं करना चाहता? कर क्यों नहीं रहा? मोदी के खिलाफ़ धर्मनिर्पेक्षता की बीन बजाने, एक लड़की, एक पत्नी की आड़ लेना भी अब किसी के काम नहीं आ रहा। यह तो ठीक है पर कोई राजनीतिक व्यक्तित्व भी मोदी के आसपास आ कर क्यों नहीं खड़ा हो जाता? बड़े-बड़े आडवाणी बह गए। मुरली मनोहर जोशी, जसवंत सिंह बह गए। राहुल, प्रियंका और सोनिया गांधी की घिघ्घी बंध गई है। मनमोहन सिंह सिरे से लापता हो गए। मुलायम, मायावती, जयललिता, ममता, नीतीश कुमार आदि फ़िलर बन गए।

अच्छा तो अरविंद केजरीवाल?

निश्चित ही अरविंद केजरीवाल मोदी की नाक में दम भर सकते थे। सिर्फ़ नाक में दम ही नहीं भर सकते थे बल्कि मोदी की राजनीति पर लगाम लगा सकते थे। और बहुत संभव था कि वह मोदी के लिए इतना स्पेस बनने ही नहीं दिए होते। और मोदी का यह कद नहीं हो पाया होता। लेकिन अब आज की तारीख में कांग्रेस की डिप्लोमेसी में फंस कर दगा कारतूस बन चुके हैं। रामगोपाल यादव के शब्दों में जो कहें तो अब वह एक भटकी हुई मिसाइल हैं वह। लेकिन एक समय था कि भारतीय राजनीति में अरविंद केजरीवाल बिलकुल ताजी हवा बन कर उपस्थित हुए थे। लगता था कि वह सचमुच कुछ कर गुज़रेंगे। बस उन की अनुभवहीनता और उन के बछड़ा उत्साह ने सब गुड़ गोबर कर दिया। मारे उत्साह में वह समझ नहीं पाए कि दिल्ली पूर्णकालिक राज्य नहीं है, उन को बहुमत नहीं मिला है और कि कांग्रेस अपने विरोधियों के लिए लाक्षागृह बनाने में पुरानी एक्सपर्ट है। वह यह भी भूल गए कि अभी जल्दी ही अन्ना हजारे और रामदेव के आंदोलन को कांग्रेस अपनी डिप्लोमेसी में शिफ़्ट कर चुकी है तो वह किस खेत की मूली हैं? दूसरे उन की सरकार की अराजकता ने, सोमनाथ और राखी बिड़लान जैसे मंत्रियों ने उन की अलग किरकिरी करवाई। असमय सरकार छोड़ कर भगोड़ा करार कर दिए गए अलग। उन की लोकसभा में बैठने की महत्वाकांक्षा और जल्दबाजी ने न सिर्फ़ उन की राजनीति पर बल्कि जनता ने उन के बहाने जो साफ सुथरी राजनीति का सपना देखा था, उस पर भी पानी फेर दिया। अब अरविंद केजरीवाल की विफलता ने एक भारी शून्य खड़ा कर दिया किसी नए राजनीतिक विकल्प के लिए। और अब आप सहमत हों या असहमत, सांप्रदायिक हों या धर्मनिर्पेक्ष पर अब यह मान लीजिए कि अपनी तमाम खामियों और खूबियों के साथ नरेंद्र मोदी भारतीय राजनीति में एक नया वैकल्पिक सच है। पर अजब मंजर है इन दिनों। मोदी विरोध और मोदी समर्थन में ही दुनिया जी रही है। और भी गम हैं जमाने में मोदी के सिवा !एक मोदी से जनता की इतनी मुहब्बत, इतना समर्थन और कुछ लोगों की मोदी से इस कदर नफ़रत, इतनी खुन्नस ! क्या कहने ! जाने क्या है कि कुछ लोगों को मोदी की हर बुरी बात भी अच्छी लगती है। तो कुछ लोगों को मोदी की हर अच्छी बात भी बुरी लगती है। या इलाही ये माजरा क्या है ! अजब है यह भी। कि जो लोग धर्म, ब्राह्मण, काशी आदि से नफ़रत करते रहे हैं वही लोग आज इन्हीं धर्म, ब्राह्मण, काशी आदि से निरंतर देश को बचा लेने का दम भर रहे हैं। उन्हें उन की ताकत बता रहे हैं। मोेदी है कि इन के छाती पर इन की लफ़्फ़ाज़ी के चलते सवार है। काश कि यह लोग समय रहते कांग्रेस की भ्रष्टाचारी नीतियों, महगाई और अनाचार के खिलाफ़ भी लामबंद हुए होते तो मोदी से देश को बचाने के लिए इन लोगों को इस कदर हांफना नहीं पड़ता। मोदी आ चुका है और यह लोग तेली के बैल की तरह आंख और दिमाग पर पट्टी बांधे अभी भी धर्मनिरपेक्षता की जुगाली में जुते पड़े हैं। मोदी विरोध अब खिसियाई बिल्ली खंभा नोचे में तब्दील दिखता है। कोई माने या न माने आज का सच यही है।   काशी में नरेंद्र मोदी का नामांकन जुलूस तो न भूतो, न भविष्यति के तौर पर दर्ज हो गया है। कांग्रेस के लोग या और तमाम लोग मोदी को चाहते नहीं किसी भी कीमत पर। तो भी। खैर अब यह एक बीती हुई बहस है।

अब नई बहस यह है कि मोदी की सरकार तो बननी तय है लेकिन यह मोदी सरकार भाजपा के बहुमत वाली होगी कि एन डी ए के बहुमत वाली सरकार होगी। जो भी हो। मोदी सरकार से दो तीन चीज़ें तो सचमुच ठीक हो जाएंगी यह पक्का है। जैसे कि कश्मीर की समस्या तो निश्चित ही मोदी निपटा देंगे। क्यों कि कश्मीर समस्या निपटाने के लिए जिस सख्ती की दरकार है वह मुस्लिम तुष्टीकरण में लगी कोई सरकार तो कतई नहीं कर सकती। और कांग्रेस तो हरगिज नहीं। अलगाववादी नेताओं के सुर देखिए कि अभी से बदलने लगे हैं। बल्कि पाकिस्तान से लगायत अमरीका तक के सुर बदल गए हैं। अमरीकी अखबार तो नरेंद्र मोदी की तुलना अमरीकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन से करने लगे हैं। दूसरी जो बड़ी बात कही है मोदी ने कि वह संसद को अपराधियों से मुक्त करवाएंगे। इस के लिए जीत कर पहुंचे सांसदों के शपथ पत्र में दिए डिटेल्स को ही वह सुप्रीम कोर्ट के मार्फ़त कमेटी बना कर जांच करवा कर तुरंत कार्रवाई करेंगे। वह सांसद भले भाजपा का ही क्यों न हो। यह बहुत ज़रुरी है। तीसरी महत्वपूर्ण बात जो मोदी ने आज काशी में नामांकन भरने के समय दिए बयान में कही कि वह गंगा को भी साफ करने की बात। साबरमती को साफ करने का हवाला भी उन्हों ने दिया ही। गंगा के बहाने और तमाम नदियां भी साफ होंगी ही। मुस्लिमों के लिए भी वह पसीजे और बताया कि जैसे गुजरात में पतंग बनाने वालों के व्यवसाय के लिए उन्हों ने बहुत कुछ किया है। और कि पतंग व्यवसाय पैतीस करोड़ से बढ़ कर सात सौ करोड़ का हो गया है। तो वह काशी के बुनकरों के लिए भी बहुत कुछ करेंगे। तो भी यह एक बात तो तय है कि मुस्लिम मतदाता तो मोदी के पक्ष में फिर भी नहीं आने वाले यह पूरी तरह तय है।  मोदी का डर मुसलमानों के दिल से जाने वाला जल्दी है नहीं। जाएगा भी तो मुस्लिम वोट के चूल्हे पर रोटी सेंक रही पार्टियां जाने नहीं देंगी। मोदी का खराब रिकार्ड अपनी जगह है। लेकिन फिर भी कुछ टिप्पणीकार मानते हैं कि मोदी के तमाम विरोध के बावजूद मोदी की बातों पर यकीन किया जाना चाहिए। देश को आगे बढ़ने की लिए कड़वाहट भूल कर आगे तो बढ़ना ही पड़ेगा। जर्मनी में हिटलर के इतिहास को भूल कर ही लोग आगे बढ़े हैं।

हिंदुस्तान को भी जर्मनी की राह पर चल देने में कोई हर्ज नहीं है। शैलेंद्र ने एक भोजपुरी फ़िल्म हे गंगा मैया तोहे पियरी चढ़इबों के लिए एक गाना लिखा था जिसे चंद्रगुप्त के निर्देशन में लता मंगेशकर ने गाया है: हे गंगा मैया तोंहे पियरी चढ़इबो, सैयां से करि द मिलनवा हो राम ! तो अभी तो सौ सवालों में एक सवाल है कि क्या गंगा मैया के बुलावे पर काशी आए नरेंद्र मोदी को भी गंगा मैया क्या उन के सैयां से मिलवा देंगी? और कि वह उन को प्रधान मंत्री बनवा देंगी? अभी तो मदन मोहन मालवीय की मूर्ति समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के लोगों ने धो दी है यह कह कर कि मोदी ने उसे माला पहना कर अपवित्र कर दिया है। तो क्या वह लोग विवेकानंद और पटेल की मूर्ति को भी गंगा और दूध से धो कर पवित्र नहीं करेंगे? और कि अगर मोदी जीत गए काशी से तो क्या वह पूरी काशी भी गंगाजल से धोएंगे? और जो धोएंगे ही तो भला कैसे? अभी तो आलम यह है कि मोदी मंदिर की बात नहीं कर रहे न हिंदू मुसलमान की। लेकिन सेक्यूलर कही जाने वाली पार्टियां कांग्रेस, सपा, बसपा आदि ही हिंदू मुसलमान आदि की माला फेर रही हैं। यह नज़ारा ठीक वैसा ही है जैसे कभी पश्चिम बंगाल में जब नंदीग्राम, सिंगूर घट रहा था तब वहां की वामपंथी सरकार मज़दूरों के खिलाफ़ खड़ी थी और तृणमूल कांग्रेस और भाजपा जैसी पार्टियां मज़दूरों के साथ खड़ी थीं। इस चुनाव में भी वही बात जैसे दुहराई जा रही है। कि अयोध्या, मथुरा, काशी का नारा देने वाली भाजपा के नेता नरेंद्र मोदी काशी में रह कर भी विश्वनाथ मंदिर और मस्जिद की बात नहीं कर रहे और समाजवादी पार्टी के लोग मदनमोहन मालवीय की मूर्ति को गंगा जल से धो कर पवित्र कर रहे हैं। क्या तो मोदी ने माला पहना कर उसे अपवित्र कर दिया है। कभी बड़े गुलाम अली खां ने गाया था और बिस्मिल्ला खां ने बजाया भी वही दादरा जाने क्यों याद आ रहा  है : का करुं सजनी आए न बालम ! कम से कम सत्ता तो ऐसे नहीं आने वाली मित्रो ! आप लाख गाते रहिए और गंगाजल से मूर्तियां पवित्र करते रहिए। देश की राजनीति अब बदल गई है। भारत में धर्म और जाति-पाति एक निर्मम सचाई ज़रुर है पर निर्णायक भी हो यह कतई ज़रुरी नहीं। नरेंद्र मोदी की नई राजनीति फ़िलहाल इसी राह पर है। अब आप नरेंद्र मोदी को फ़ासिस्ट कह लीजिए, तानाशाह कह लीजिए या सांप्रदायिक या हत्यारा ! जनता इस को सुनने वाली है नहीं। कम से कम इस चुनाव में। वह अब की चुनाव को मंहगाई और भ्रष्टाचार के मुकाबिल विकास और रोजगार के सपने में तौलने जा रही है। आंख खोलिए और गंगा के किनारे उग रहे इस सूरज को प्रणाम करिए न करिए यह आप की सुविधा है पर सूरज डूब रहा है कृपया यह कहने से हो सके तो बचिए। जनता तो अपने फ़ैसले का चश्मा और तराजू बदल चुकी है। आप भी बदलिए और हां, अपना विरोध ज़रुर जारी रखिए ताकि यह आदमी अपनी तानाशाही से बाज आए !