Thursday 12 June 2014

अखिलेश यादव एक असफल ही नहीं निकम्मे प्रशासक बन कर उपस्थित हुए हैं

 फेसबुकिया नोट्स की एक और लड़ी 

  • अखिलेश यादव को मुलायम सिंह यादव अगर परिवारवाद की जकड़न और प्रशासन में यादव वर्चस्व से मुक्ति दे दें, थाना प्रभारियों में यादवों का जोर कम कर दें और कि अपना हस्तक्षेप भी कम से कम कर दें तो शायद अखिलेश सरकार की फजीहत में कुछ कमी आ जाए । नहीं वह तो लगता है कि एक समय के सब से नाकारा मुख्य मंत्री श्रीपति मिश्र का भी सारा रिकार्ड तोड़ देंगे । श्रीपति मिश्र के कार्यकाल में एक स्लोगन चलता था नो वर्क, नो कंप्लेंड ! ठीक वैसे ही जैसे नरसिंहा राव के कार्यकाल में कहा जाता था कि निर्णय न लेना भी एक निर्णय है । तो अखिलेश यादव भी अगर पिता का परिवारवाद, यादवी मायाजाल नहीं तोड़ पाएंगे तो प्रदेश का बंटाधार जो वह कर रहे हैं सो तो कर ही रहे हैं अपना भी सत्यानाश कर लेंगे । और अंतत: राहुल गांधी जैसे कागज़ फाड़ते घूमते थे, यह कुर्ता फाड़ते घूमेंगे । और नए-नए स्लोगनों की बरसात होने लगेगी । धूमिल की वह कविता
भाषा में भदेस हूं
इतना पिछड़ा हूं
कि उत्तर प्रदेश हूं !

आज कल कुछ ज़्यादा ही सर चढ़ कर बोल रही है उत्तर प्रदेश के । वैसे भी अब तक उत्तम प्रदेश बनने से वंचित उत्तर प्रदेश चार टुकड़ों में बंटने को तैयार बैठा है । तो अखिलेश यादव को समय रहते ही अपनी छवि खातिर कुछ तो कर ही लेना चाहिए। इस लिए भी कि यादव हो कर आप यादवों के नेता तो एक बार हो सकते हैं लेकिन मुख्य मंत्री होने के लिए तो आप को सफल प्रशासक ही बन कर रहना होगा । और कि अब तक के कार्यकाल में अखिलेश यादव एक असफल ही नहीं निकम्मे प्रशासक बन कर उपस्थित हुए हैं।

  • दुष्यंत कुमार का एक शेर है न कि:
कैसे मंज़र सामने आने लगे हैं,
गाते-गाते लोग चिल्लाने लगे हैं।

अब देख रहा हूं कि लगभग इसी तर्ज़ पर संसद से ले कर फेसबुक तक कांग्रेस से ले कर भाजपा तक नरेंद्र मोदी के विरोध के नाम पर कभी आग मूतने वाले लोग अब मिमियाने लगे हैं। और बतर्ज़ खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे इन की मिमियाहट बहुत ऊब पैदा कर रही है । बताइए कि लोग विरोध भी डट कर नहीं कर पा रहे हैं? बहुत हो जाता है तो लोग आडवाणी नाम की एक गाय आगे कर देते हैं और उन के कंधे पर अपना सर रख कर हांफ लेते हैं । गम गलत कर लेते हैं । आखिर यह मंज़र भी कब बदलेगा? या कि विरोध के नाम पर यह शून्य, यह सन्नाटा कब टूटेगा ? क्या विरोध के सारे औजार इतने कुंद पड़ गए हैं ?

  • मिर्ज़ा ग़ालिब रमजान में एक भी दिन रोजा नहीं रहते थे । उलटे रोज शराब पीते थे, जुआ खेलते थे । लेकिन पूरी खुद्दारी से रहते थे। तो क्या वह शायर नहीं थे कि मुसलमान नहीं थे ?

  • मित्रों आप लोग भी जाने किन-किन सवालों और मोड़ में फंसते गए । मेरे कहने का कुल मतलब यह था और कि है कि आदमी चाहे जो हो उस की पहचान उस के काम से ही होती है। हिंदू मुसलमान आदि से नहीं । लेकिन देख रहा हूँ कि कई मित्र ग़ालिब की हिफाज़त में सिर्फ इस लिए खड़े हो गए गोया ग़ालिब सिर्फ मुसलमान हों । कृपया ग़ालिब को ग़ालिब ही रहने दें। मुसलमान तो वह थे ही इस से भला कब इंकार है लेकिन अब वह हमारी धरोहर हैं और कि हम सब की साझी विरासत हैं । उन की शायरी हमारी जान भी है और शान भी ।

  • कुछ फेसबुकिया मित्रों को इस बात पर ऐतराज है कुछ सांसदों ने संस्कृत में शपथ क्यों ले ली? अरबी या हिब्रू में क्यों नहीं ली? ऐतराज यह भी है कि अंगरेजी में भी लोग शपथ क्यों लेते हैं जब कि अंगरेजी भी भारतीय भाषा नहीं है । मित्रों, अब से जान लीजिए कि अंग्रेजी को भी भारतीय भाषा होने का गौरव है। भारतीय भाषा का दर्जा संविधान की आठवीं अनुसूची में संस्कृत को भी है। और भी तमाम भाषाओं को है। और कि कोई भी आठवीं अनुसूची में दर्ज किसी भी भाषा में शपथ ले सकता है। लेकिन अरबी या हिब्रू भाषा चूंकि भारतीय भाषा नहीं हैं, संविधान की आठवीं अनुसूची में दर्ज नहीं है, इस लिए इस में कोई शपथ नहीं ले सकता । आप मित्रों को शायद याद ही होगा कि जब ज्ञानी जैल सिंह राष्ट्रपति थे तब वह राष्ट्र के नाम संदेश हिन्दी या अंगरेजी में नहीं, पंजाबी में देते थे बाद में उस का अनुवाद पेश किया जाता था ।

  • उत्तर प्रदेश में अभी तक बसपा का शून्य पर नज़र आना, खाता भी नहीं खुल रहा बसपा का। सपा का खाता तो खुल रहा है पर वह भी पैक अप की राह पर है।जातिवादी जहर फैलाने वालों को यह बहुत बड़ा सबक है। यह बहुत ज़रुरी था।

  • इस चुनाव परिणाम ने दो तीन बात तो तय कर दी है कि सामाजिक न्याय के नाम पर जातीय राजनीति के जहर और मुसलमानों को डराने की राजनीति के दिन तो विदा हो ही गए हैं। साथ ही गठबंधन के नाम पर क्षेत्रीय दलों की ब्लैकमेलिंग के दिन भी विदा हो गए। यह बहुत सैल्यूटिंग है। देश को आगे बढ़ने के लिए यह बहुत ज़रुरी है। कांग्रेस सहित अन्य दलों और वामपंथी दलों को यह भी ज़रुर जान लेना चाहिए मुसलमानों को सेक्यूलर नाम का लेमनचूस थमा कर उन की आंख में निरंतर धूल झोंकना अब काम नहीं आने वाला। यह कार्ड अब सड़ गया है। कश्मीर समस्या का समाधान भी अब बहुत दूर नहीं है। लोगों को मोदी को निरंतर गाली देने के बजाय देश की जनता की भावना का सम्मान करना सीखना चाहिए। मोदी विरोध कायम रखते हुए ही सही।

  • नारायण दत्त तिवारी जी और उज्जवला शर्मा जी को यह हार्दिक बधाई देने का समय है मित्रो ! उन को धिक्कारने का नहीं। उन का मजाक उड़ाने क समय नहीं है यह। इस उम्र में यह फ़ैसला लेना आसान नहीं है। हमारे बंद समाज में लोग तो अभी भी भरी जवानी में भी प्रेम का इजहार नहीं कर पाते। वह अगर कर रहे हैं प्रेम का इजहार और अपनी गलतियों को दुरुस्त कर रहे हैं तो इस के लिए उन्हें सैल्यूट किया जाना चाहिए। खूब बड़ा वाला सैल्यूट तिवारी जी और उज्जवला जी आप को भी। हार्दिक बधाई, बहुत-बहुत बधाई ! आप की यह नई ज़िंदगी और खूबसूरत हो ! आप का प्यार खूब परवान चढ़े। मित्र लोग चाहें तो इस मौके पर इस लेख का परायण फिर से कर सकते हैं :
कोई बलात्कारी नहीं हैं नारायणदत्त तिवारी, साझी धरोहर हैं हमारी
http://sarokarnama.blogspot.in/2012/06/blog-post_17.html

  • फ़ेसबुक पर अगर कुछ लोग किसी को अनफ्रेंड करते हैं या ब्लाक करते हैं तो यह उन की अपनी सुविधा और विवेक है। यह उन का अपना व्यक्तिगत है। पर इस का पूरी अकड़ से ऐलान भी करना ज़रुरी होता है क्या ?

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