Friday 14 November 2014

सामाजिक समता के नाम पर जहर घोलना और उस की फसल काटना कोई नई बीमारी नहीं है

 कुछ और फ़ेसबुकिया  नोट्स 


  • आख़िर ना-नुकुर करते न करते सोनिया गांधी और राहुल गांधी भी नरेंद्र मोदी के एक गांव गोद लेने की योजना में शामिल हो कर आज अपने-अपने क्षेत्रों में गांव गोद ले लिए। तो उधर मराठा क्षत्रप शरद पवार सोनिया का दिल्ली में नेहरु जयंती का न्यौता ठुकरा कर मय लाव-लश्कर के झाडू लिए महाराष्ट्र में नेहरु जयंती मनाते दिखे। तो मोदी ने ट्विट कर के पवार की तारीफ़ झोंक दी । मोदी आस्ट्रेलिया में नेहरु जयंती भी नहीं भूले तो भारत में गृह मंत्री राजनाथ सिंह भी नेहरु और आर एस एस के तार जोड़ कर नेहरु की चर्चा करते मिले। क्या समय बदल रहा है ? गुड है !


  • बिहार के मुख्य मंत्री जीतन राम माझी ने कौन सी नई बात कह दी जो इतना हंगामा बरपा है ? हमारे तमाम दलित चिंतक तो बहुत पहले ही से आर्य अनार्य, देसी विदेशी का यह तोड़क चिंतन पहले ही से बघारते रहे हैं। सवर्णों को आक्रमणकारी और विदेशी बताते रहे हैं । ठीक वैसे ही जैसे गांधी ने भारतीय समाज और राजनीति में दलितों को एक बड़ा स्पेस दिया और दिलवाया ,लेकिन अम्बेडकर यह सब भूल-भाल कर कभी इन्हीं गांधी को कटघरे में खड़ा किया करते थे । तो अपनी मायावती इसी बिना पर गांधी को शैतान की औलाद कहने लगीं । कांशी राम गांधी समाधि पर जूता पहन कर उन्हें अपमानित कर हंगामा खड़ा करने लगे । तो जीतन राम माझी भी उसी परंपरा को आगे बढ़ा कर अपनी राजनीतिक दुकानदारी सजाने और जमाने की कवायद कर रहे हैं । सो उन की किसी बात को बुरा मानने की कोई ज़रूरत नहीं है । सामाजिक समता के नाम पर सामाजिक समरसता में जहर घोलना और उस की फसल काटना कोई नई बीमारी नहीं है। इस को इसी अर्थ में लीजिए । जब किसी राजनीतिज्ञ के पास असफलताओं का ढेर लग जाए , कुढ़न बढ़ जाए तो वह आख़िर करे भी तो क्या करे ? यह करतबबाजी जरूरी हो ही जाती है। और जीतन राम माझी ने यह कोई पहला अंतर्विरोधी बयान तो दिया नहीं है । बिजली का बिल कम करने के लिए बिजली विभाग के कर्मचारियों को घूस देने सहित एक लंबी सूची है उन के ऐसे विवादित बयानों की। यह अनायास नहीं है कि अब उन की ही पार्टी के विधायक उन्हें असंसदीय शब्दों से नवाज़ रहे हैं और उन्हें पागल तक कह दे रहे हैं । चलने दीजिए यह सब भी । भारतीय समाज और राजनीति जब वैचारिक और सैद्धांतिक रास्तों से भटक ही गई है तो यह सब तो होना ही है ! जय हो ! बस थोड़ी सी तकलीफ होती है तो सिर्फ़ इस लिए कि अपने सुशासन बाबू यानी नीतीश कुमार जैसे राजनेता जिस ने बिहार की आमूल-चूल तसवीर बदल दी और एक नया बिहार गढ़ दिया उस नीतीश कुमार ने इन जीतन राम माझी में ऐसा क्या देख लिया जो इन्हें अपना उत्तराधिकारी चुन लिया । और बिहार को भंवर में छोड़ दिया।


  • जामा मस्जिद के शाही इमाम मौलाना बुखारी ने अपने बेटे की ताजपोशी समारोह में पाकिस्तान के प्रधान मंत्री नवाज़ शरीफ़ को आमंत्रित किया और ऐलानिया बता दिया कि उन्हों ने देश के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को नहीं बुलाया है। अब बारी कांग्रेस की है। कांग्रेस ने भी नेहरु जयंती के कार्यक्रम में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को अंगूठा दिखा दिया है। बुखारी तो कुएं के मेढक हैं , गिरगिट हैं और कि उन के कार्यक्रम का कुछ बहुत मतलब भी नहीं है। लेकिन पंडित नेहरु सिर्फ़ कांग्रेस के ही नहीं देश की भी साझी धरोहर हैं , देश की आन , बान और शान हैं । उन के कार्यक्रम में इस छुटपन से कांग्रेस और उस के कर्ता-धर्ताओं को बच लेना चाहिए था। नरेंद्र मोदी अब सिर्फ़ नरेंद्र मोदी या भाजपा नेता ही नहीं पूरे देश के निर्वाचित प्रधान मंत्री हैं। दुनिया इस बात को मानती है , कांग्रेस को भी जान लेना चाहिए। भेद-मतभेद अपनी जगह हैं , मूल्य, परंपरा और सदाशयता अपनी जगह हैं ।


  • सेक्यूलरिज्म की ही तरह हिंदुत्व का कार्ड भी अब एक पिटा हुआ कार्ड है, यह बात नरेंद्र मोदी, भाजपा सहित पूरा देश जान गया है । पर उद्धव ठाकरे को यह तथ्य अभी पता नहीं चल पाया है । कोई उद्धव ठाकरे को यह तथ्य क्यों नहीं बता देता ! पिटे हुए पहलवान की तरह वह अभी भी ताल ठोंके जा रहे हैं। उन को और उन की मुद्रा देख कर एक फ़िल्मी गाना याद आता है , मेरा सुंदर सपना टूट गया ! कभी यह गाना लाल कृष्ण आडवाणी पर चस्पा था , वह अंतत: प्रधान मंत्री नहीं बन पाए। उद्धव ठाकरे का मुख्य मंत्री बनने का सपना भी टूट चुका है और अब वह उप मुख्य मंत्री पद का सपना भी गंवा चुके हैं , यह पूरा देश जान गया है पर उद्धव ठाकरे अभी भी , सब कुछ लुट जाने के बाद भी मुंगेरी लाल के सपने देखे जा रहे हैं ? मराठी मानुष को यह टूटा हुआ सपना मुबारक हो !


  • मुझे बिलकुल समझ में नहीं आ रहा कि आख़िर शिव सेना निरंतर किस आत्म-सम्मान की बात कर रही है और कि मंत्री परिषद में शामिल होने के लिए इतने सारे हिच, इफ़, बट और शर्तें , नखरे आदि-इत्यादि किस आत्म-सम्मान खातिर ? कौन सा आत्म-सम्मान ? हारी हुई सेना , हारी हुई ही होती है । वह चाहे पोरस की सेना हो , पाकिस्तानी सेना हो या शिव सेना !


  • आप नरेंद मोदी को सांप्रदायिक कहिए, हत्यारा कहिए , यह कहिए, वह कहिए चाहे जो कहिए पर सच यह है कि अब यह सारे कार्ड और रिकार्ड पुराने पड़ गए हैं । इन औजारों से अगर आप मोदी का विरोध करना चाहते हैं तो आप की हार सुनिश्चित है । लेकिन मोदी को हराना चाहते हैं तो उन की सहजता, विनम्रता, सादगी , ईमानदारी , मेहनत, उन की लोच , उन की राजनीतिक बिसात और पारदर्शिता आदि को भी आप को अपना औजार बनाना अनिवार्य पाठ हो गया है । बनारस की ताज़ा यात्रा में ग्राम प्रधान के साथ और बुनकरों के साथ का उन का विनम्र व्यवहार आदि की कहानी तो अपनी जगह है पर अभी वह जो गुगली मार कर उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री अखिलेश यादव को अपने सफाई आंदोलन में जोड़ लेने का ऐलान कर के चाल चली है , उस का क्या जवाब देंगे अखिलेश या मुलायम ? क्या तोड़ है इस का ? क्या इनकार करने की ज़ुर्रत कर सकेंगे ? हरगिज़ नहीं । लेकिन याद कीजिए कि जब शशि थरूर को सफाई आंदोलन का ब्रांड अम्बेस्डर घोषित किया था मोदी ने तब कांग्रेस में उन की क्या फज़ीहत हुई थी ? सोनिया की नज़र टेढ़ी हुई और वह प्रवक्ता पद से हाथ धो बैठे ! भारतीय राजनीति में जब सदाशयता की राजनीति का अवसान हो चुका है , ऐसे कठिन समय में नरेंद्र मोदी की यह सदाशयता की राजनीतिक बिसात अभी बहुतों को बिना पानी के डुबोने वाला है । कभी मोदी को वोट देने वालों को समंदर में डूब जाने की हुंकार भरने वाले जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्य मंत्री फारुख अब्दुल्ला अब उन के कसीदे पढ़ रहे हैं । उन के बेटे और मुख्य मंत्री उम्र अब्दुल्ला भी अब पिता के सुर में सुर मिला रहे हैं। नीतीश कुमार, आम आदमी पार्टी से लगायत शिव सेना तक का हश्र हमारे सामने है । सौभाग्य कहिए, दुर्भाग्य कहिए, यह आप पर मुन:सर है पर यह और ऐसे सिलसिले बढ़ते ही जा रहे हैं , आसार बढ़ते ही जाने के हैं। लेकिन अब यह तय है कि मोदी से लड़ने के लिए उन के ही औजार लोगों को स्वीकार करने पड़ेंगे। राजसी अकड़ और सेक्यूलर होने का ढोंग और टोटका तो अब बासी कढी का उबाल ही साबित हो रहा है । समय की दीवार पर लिखी इबारत यही कहती है । बाकी शुतुरमुर्गी अदा के मारे , रेत में सर धंसाए बैठे लोगों की समझ और बीमारी का इलाज मुश्किल बहुत है ।




  • यह कर के तो अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली विधान सभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को वाक ओवर दे कर अपने पांव में कुल्हाड़ी मार ली है। और लोग हैं कि एंटी मोदी ग्रुप की तिज़ारत में लगे हैं। कांग्रेस राहुल के बोझ के साथ-साथ उन के जीजा जी की बंद हो रही कंपनियों और हरियाणा सरकार का जाल कुतरने में संलग्न है। इस देश का अब भला होगा क्या ? ऐसे तो भाई आप लोग मोदी को नहीं निपटा पाएंगे, खुद निपट जाएंगे ! 


 


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