लेखकीय दुनिया में संपादकों , आलोचकों और प्रकाशकों को इंटरनेट ने एक गंभीर चुनौती दे दी है । इन सब की तानाशाही, हेकड़ी, दुकानदारी और मोनोपोली को छिन्न-भिन्न कर दिया है इंटरनेट ने । खास कर ब्लॉग और फेसबुक ने इन सब की कमर तोड़ दी है । कमाने वाला खाएगा की तर्ज़ पर जो कहूं कि अच्छा लिखने वाला ही अब पढ़ा जाएगा ! क्यों कि पाठक तो बहुत हैं । यह तिकड़ी व्यर्थ ही पाठक न होने का घड़ियाली आंसू बहा कर आंख में धूल झोंकती रही है। इंटरनेट ने इन का यह ड्रामा भी बिगाड़ दिया है कि हिंदी में पाठक नहीं हैं ।
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  • मनोज कुमार चतुर्वेदी · 17 mutual friends
    थानवी सर के ही द्वारा एकाध लाख पाठक ब्लॉक किए जा चुके हैं !
    21 hrs · Like · 2
  • Surendra Solanki और लेखक भी कम नही। में खुद अपनी नई वर्ण व्यवस्था को प्रतिपादित करने में लगा हूँ।
  • Anil Singh पाठक का मतलब होता है - पैसे खर्च करके पढ़ने वाला।
    21 hrs · Like · 2
  • Sushil Siddharth पांडेय जी हराम का माल मिल रहा है।नेट आदि पर बिना पैसे के न मिले तब देखिए ।
    21 hrs · Like · 2
  • Sunil Nayak · Friends with Saurabh Dwivedi and 5 others
    writer are getting very few remuneration. if society will think of this.definitely it is good for society.
    21 hrs · Like · 1
  • जितेंद्र दीक्षित सहमत। पाठकों की कमी नहीं।
    21 hrs · Unlike · 1
  • Rambandhu Tiwari पाण्डेय जी जहाँ तक मैं समझाता हूँ , फेसबुक पर उत्कृष्ट लेखन और गंभीर पाठक का तो जरूर आभाव हैं । मैं यह नहीं कहता कि आप मेरे से सहमत हों लेकिन इतना जरूर चाहूँगा कि एक स्थापित लेखक होने के नाते सोचे जरूर ।
  • Krishna Bihari दयानंद जी , यह मुगालता क्यों कि हिन्दी में पाठक बहुत हैं . एक पत्रिका हिन्दी के लेखक खरीदकर तो पढ़ते नहीं ... माले मुफ्त दिले बेरहम का मामला जहाँ है वहां सब दिखाई देंगे ...जहाँ जेब गलेगी वहां एक भी दिख जाए तो वही सच्चा है मेरीनजर में ...
    21 hrs · Like · 2
  • Dayanand Pandey Anil SinghSushil Siddharthअच्छा जब पाठक खरीद कर भी पढ़ता है तो क्या पाठक की जेब से निकला पैसा लेखक को मिलता है ? हरामखोर प्रकाशकों की तिजोरी भरती है और बेईमान और मक्कार संपादकों की शराब चलती है ! यही तो फर्क है ? बड़े-बड़े अक्षरों में लिख कर रखिए कि पाठक-पाठक होता है । समय खर्च करता है पाठक पढ़ने में भी और पैसा खर्च करता है नेट के लिए भी । नेट भी मुफ्त में नहीं चलता।
    20 hrs · Edited · Like · 3
  • Dayanand Pandey Rambandhu Tiwari तिवारी जी , मैं ने सिर्फ फेसबुक का ही नहीं, ब्लॉग का भी ज़िक्र किया है । असली चुनौती ब्लॉग और साइट ने ही दी है इन लोगों को । फेसबुक तो सिर्फ कम्युनिकेशन का जरिया है । पाठक . पाठक होता है । गंभीर पाठक और फला पाठक का वर्गीकरण कोई मायने नहीं रखता है । और जो रखता है तो यह वर्गीकरण फिर किताबों और पत्रिकाओं के साथ भी उसी तरह लागू होता है ।
    21 hrs · Like · 4
  • Kavi Dm Mishra अच्छी शुरुआत हुईं है पान्डेय जी
    20 hrs · Unlike · 1
  • Dayanand Pandey Krishna Bihari कृष्ण बिहारी जी , यह मुगालता बिलकुल नहीं है, हकीकत है । मैं गगन बिहारी नहीं हूं , न हवा हवाई बात करता हूं । यह मेरा निजी अनुभव है । अपने पाठक मित्रों की ज़मीन पर खड़ा हो कर पूरी ईमानदारी से बोल रहा हूं कि हिंदी में पाठक बहुत हैं । गड़बड़ अगर कहीं है तो यह चोर और बेईमान प्रकाशकों में है जो लेखक और पाठक संबंध खत्म कर सरकारी खरीद के खटमल बन गए हैं । दुकानों पर किताब ही नहीं रखते । मार्केटिंग भी एक चीज़ होती है , यह नहीं जानते । पचास रुपए की किताब का दाम पांच सौ रुपए रखते हैं। तो हिंदी का पाठक इतना मूर्ख नहीं है कि पचास रुपए की चीज़ पांच सौ रुपए में खरीदे ! यह सब चीज़ें ठीक हो जाएं तो आप को दुनिया की किसी भी भाषा से अधिक पाठक हिंदी में दिखने लगेंगे जो कि हकीकत में हैं।
    20 hrs · Like · 4
  • Tarun Kumar Tarun Dayanand ji ne sach ka aaina dikhaya hai...sau fisadi sach...
    20 hrs · Unlike · 1
  • Akhilesh Srivastava Chaman आप की बात शतप्रतिशत सही है . किताबों की अनाप शनप कीमत ने पाठकों को साहित्य से दूर कर रखा है .
    20 hrs · Unlike · 3
  • Dhananjai Singh EKDAM SAHI KAHA AAPNE....
    20 hrs · Unlike · 1
  • Prafulla Kumar Tripathi पाण्डेय जी ! साहित्य ही नही, अभी मैंने पढ़ा है कि एक इंगलिश फिल्म ( दि इंटरव्यू) जो किन्हीं विवादों के चलते रिलीज नहीं हो पा रही थी , इंटरनेट पर डाल दी गई है और जिसने न केवल नाम कमाया बल्कि यूट्यूब वालों की अच्छी कमाई भी हो गई.इसलिए निराश नहीं होना चाहिए और सर्जनात्मक काम करते रहना चाहिए .
    19 hrs · Unlike · 3
  • आशुतोष मित्रा सही फरमाया आपने....मेरा मानना है कि हिन्दी को इसके 'वाद' प्रभाव वाले मठाधीशों ने पाठकों से दूर कर रखा था, उसकी एक झलक से फेसबुक भी अछूती नहीं है...लेकिन, यह माध्यम सशक्त है और अच्छा लिखने वाला अपने पाठकों के साथ हिन्दी के लेखन सागर में मस्त तैर रहा है।
    19 hrs · Unlike · 2
  • Krishna Bihari patrikayen to 500/ mein naheen milteen ! yadi aap sadanand bankar isi katu sachchai ko bhoole hue jameen par hain to rahiye . main bhi hindibhashi samooh mein rahta hoon aur jaanta hoon ki kitne paathak hain aur use badhane ki koshish mein laga hoon . shayad kuch logon mein paathkeeyta jaga sakoon to hindi ki kuch seva kar sakoonga ...
    19 hrs · Like · 1
  • Vipin Tiwari हिन्दी की पुस्तकें अधिक दामों में बेची जा रही हैं अपेक्षाकृत अंग्रेजी की पुस्तकों (साहित्य ) के | यह ठोस वजह है जिससे कि हिन्दी भाषा की पुस्तकों के पाठक कम हो रहे हैं |
    19 hrs · Unlike · 2
  • Gyanendra Vikram Singh Ravi सत्य ...
    18 hrs · Unlike · 1
  • एल.एस. बिष्ट बिल्कुल सही ।
    18 hrs · Unlike · 2
  • Shridhar Dwivedi der se ayila bhai magar garam bolala.......................
    17 hrs · Unlike · 1
  • Shishir Singh Waah bahut khoob
  • Dinesh Dubey bahut khoob Waah
    17 hrs · Like · 1
  • Dayanand Pandey Krishna Bihari कृष्ण बिहारी जी , अब आप ख़ुद निकट के संपादक हैं । सो इस बात की पड़ताल ज़रूर करें कि जिस हिंदी भाषा को बोलने और पढ़ने वाले करोड़ो लोग हों । जिस हिंदी भाषा के कवि सम्मेलनी कवियों को लाखों रुपए एक काव्य पाठ के लिए मिलने लगा हो , जिस हिंदी भाषा की फ़िल्में हफ़्ते भर में दो सौ , तीन सौ करोड़ रुपए कमा लेती हैं । जिस हिंदी में गीत, संवाद और विज्ञापनी स्लोगन लिख कर लोग करोड़ो रुपए हर साल कमा रहे हों । इसी हिंदी भाषा में अनूदित हो कर तमाम गैर हिंदी भाषी लेखकों की किताबें लाखों में बिकती हों । और यही प्रकाशक बेचते हैं । एडवांस दे कर अनुवाद करवाते हैं यही प्रकाशक । इसी हिंदी भाषा के प्रकाशक और संपादक को अपने पाठक क्यों नहीं मिलते ? ज़रूर प्रकाशक और संपादक ही इस के लिए ज़िम्मेदार हैं , उन में ही बड़ी खोट है ,आप को नहीं लगता ?
    17 hrs · Like · 3
  • Amod Pandey Yah niti banaye gaiyee hogi ki hindi ke pathakon ki sankhya hi mat badhane do . Aise tarikon se ye abhas hota hai .keemat jyada rakhenge to swatah hi kam log pathak ka roop dhar paenge .
    16 hrs · Unlike · 2
  • Amod Pandey Sir , aap ki bat sau fisadi sahi hai .aur bahut se log sahi jante hue bhi aapki bat ka samarthan nahin karenge .
    16 hrs · Unlike · 1
  • Shesh Amit दयानंद जी मैं आपके इस पोस्ट से बिलकुल सहमत हूँ।प्रकाशक कैसी ठगी करते हैं इसकी कल्पना की जा सकती है।पाठकों से अगर छल कर सकते हैं तो लेखकों के साथ क्या करते होंगे।लखनऊ पुस्तक मेले में राजकमल वालों नें किसी अखबार के साथ मिलकर कुछ रचनाओ पर पाठकों के लिये सवाल दिये।मुझे दो बार प्रथम पुरस्कार देने की घोषणा हुयी।जब पुस्तकें लेने पहुँचा तो वे बड़े अनिच्छुक से दिखे।जबकि पुरस्कार राशि की किताबों से दस गुणा किताब मैं यूँ ही खरीदता था।फिर फेसबुक पर गुजरे किताबों से एक रचनाकार की रचना विशेष से सवाल किये।दो बार उत्तर भेजा।परिणाम नहीं निकालें।अनुस्मारक भी दिया।आज तक जवाब नहीं।फेसबुक और ब्लॉग इन गैंग वालों की हेकड़ी धीरे सेनिकाल रही है।हिन्दी के बहुत पाठक हैं।बस गुंडैती से बच जाये तो।
  • Dayanand Pandey
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