Tuesday 22 September 2015

मुद्राराक्षस को पांच लाख रुपए की मदद करने की सिफारिश उदय प्रताप सिंह ने मुख्य मंत्री से की

मुद्राराक्षस
मुद्राराक्षस को पांच लाख रुपए की आर्थिक मदद करने की सिफारिश उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष उदय प्रताप सिंह ने मुख्य मंत्री अखिलेश यादव से की है। यह अच्छी खबर है। हुआ यह कि बीते दिनों उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के पुरस्कार समारोह में पत्रकारिता भूषण से सम्मानित होने के लिए सुपरिचित कवि और पत्रकार विष्णु नागर लखनऊ आए तो मुद्राराक्षस से मिलने की इच्छा भी उन्हों ने यह कहते हुए जताई कि एक समय उन्हों ने उन की काफी मदद और हौसला अफजाई की थी। लेकिन जब वह मुद्राराक्षस से मिल कर लौटे तो बहुत तकलीफ में थे । ख़ास कर उन की आर्थिक मुश्किल को देख कर वह मुश्किल में आ गए । इस बाबत चर्चा की। वह दिल्ली लौट गए यह कहते हुए कि उन के लिए कुछ किया जाना चाहिए । तो कुछ लेखक एक दिन इकट्ठा हुए इस बाबत । और एक ड्राफ्ट बना कि मुख्य मंत्री और हिंदी संस्थान को यह आवेदन दिया जाए।
विष्णु नागर

महोदय ,

मुद्राराक्षस हमारे समय के एक बड़े लेखक हैं । हिंदी साहित्य और समाज की उन्हों ने दुर्लभ सेवा की है। उपन्यास , नाटक , कहानी और अपनी विविध टिप्पणियों से हिंदी को निरंतर समृद्ध किया है । अब वह 83 वर्ष के हो गए हैं और देह से कमजोर हो गए हैं । गंभीर आर्थिक संकट से गुज़र रहे हैं । इतना कि उन का जीवन यापन कठिन हो गया है । उन की मानसिक बुनावट और चेतना ऐसी है कि वह खुद किसी से कोई मदद नहीं
मांग सकते । न मांगेंगे ।

इस लिए हम हिंदी के लेखक आप से मांग करते हैं कि मुद्राराक्षस जी को दैनंदिन जीवन जीने के लिए एक नियमित आर्थिक मदद करने के लिए कोई व्यवस्था करें । और तात्कालिक रूप से अपने विवेकाधीन कोष से दस लाख रुपए की मदद करें ताकि वह अपना दैनंदिन जीवन सामान्य रूप से , सम्मान पूर्वक जी सकें ।
उदय प्रताप सिंह
आज कुछ लेखक हिंदी संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष उदय प्रताप सिंह से मुद्राराक्षस के बाबत मिले । उदय प्रताप सिंह ने मुद्राराक्षस की मदद के प्रस्ताव को न सिर्फ़ स्वीकार कर लिया बल्कि मुख्य मंत्री से पांच लाख रुपए मदद की सिफारश भी कर दी। हिंदी संस्थान की ओर से भी मदद का वायदा किया । यह सब तब है जब दो साल पहले लखनऊ के एक पुस्तक मेले में मुद्राराक्षस ने अपनी रवायत और आदत के मुताबिक़ हिंदी संस्थान पर न सिर्फ़ बहुत गहरे आरोप लगाए थे बल्कि कार्यकारी अध्यक्ष उदय प्रताप सिंह पर भी कड़े प्रहार किए थे। कहा था कि ये कौन से कवि जी हैं इनका तो मैंने कभी नाम भी नहीं सुना। अलग बात है कि हिंदी संस्थान की अमिता दुबे ने उसी समय मुद्राराक्षस के आरोपों का कड़ा प्रतिवाद किया था , उसी मंच से। तब से जब भी कभी मुद्राराक्षस की बात आती उदय प्रताप सिंह और हिंदी संस्थान चुप लगा जाते। स्पष्ट है कि मुद्रा जी हिंदी संस्थान के लिए अप्रिय हो चुके थे । पर आज जब उदय प्रताप सिंह से मुद्राराक्षस की आर्थिक दिक्कतों की बात आई तो वह बीती सारी कड़वाहट भूल गए और मुद्राराक्षस की मदद खातिर सहर्ष सहमति ही नहीं दी , मुख्यमंत्री से इस की सिफारिश भी कर दी । उदय प्रताप सिंहकी इस सद्भावना की जितनी प्रशंसा की जाए , कम है

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