Saturday 17 October 2015

किताबें छापने के नाम पर लोगों को ठगने और लूटने वाले इस अरुण चंद्र राय को ठीक से पहचान लीजिए


अरुण चंद्र राय

इस व्यक्ति को ठीक से देख लीजिए । नाम है अरुण चंद्र राय । दरभंगा का रहने वाला है । अपने को भारत सरकार में सहायक निदेशक बताता है । इंदिरा पुरम , गाज़ियाबाद में रहता है । फ़ेसबुक  पर कंटिया लगा कर भोले-भाले लोगों को फंसाता है । सरकारी नौकरी में रहते हुए भी जाने कैसे प्रकाशन का कारोबार करता है । ज्योति पर्व प्रकाशन नाम से । रायल्टी तक देने की बात करता है । और अच्छी-अच्छी, मीठी-मीठी बातें कर के पैसा ऐंठता है किताब छापने के नाम पर और फिर रफ़ूचक्कर हो जाता है । आप करते रहिए फ़ोन और भेजते रहिए संदेश । वह सांस नहीं लेता ।
 
आज कल कुछ क्या ज़्यादातर प्रकाशकों ने धंधा ही बना लिया है यह। क्या छोटा प्रकाशक , क्या बड़ा प्रकाशक । सभी इस राह के राही हैं । होता यह है कि पंद्रह हज़ार , बीस हज़ार से पचास हज़ार रुपए तक ऐंठ कर यह प्रकाशक रफ़ूचक्कर हो जाते हैं । महिलाएं इन का सब से आसान शिकार होती हैं । विदेशों में रहने वाली महिलाएं भी । क्यों कि वह एक हद से ज़्यादा लड़ नहीं सकतीं । भारत नहीं आ सकतीं लड़ने के लिए । इन से गाली-गलौज नहीं कर सकतीं । यह प्रकाशक यह भी समझते हैं कि लंदन - अमरीका आदि में रहने वाले सभी लोग पैसे में लोटते हैं। ख़ैर , हालत यह है कि हज़ार-पांच सौ रुपए के खर्च में आज कल किसी किताब की पचीस - पचास या सौ प्रतियां लेज़र प्रिंट से निकाल कर बाईंड हो जाती हैं । और यह प्रकाशक यही और इतनी ही प्रतियां छाप कर संबंधित लेखक को दे देते हैं । बाक़ी सरकारी खरीद में दस-बीस प्रतियां सबमिट कर देते हैं । ऑर्डर मिल जाता है जितनी किताब का , उतनी ही किताब छाप कर , सप्लाई कर सो जाते हैं । ऑर्डर मिलता जाता है , किताब छापते जाते हैं । लेखकों के पैसे से अपनी लागत लगाते हैं और लेखक को अंगूठा दिखा देते हैं । एक-एक किताब के लिए तरसा देते हैं ।

मेरी बड़ी बहन शन्नो अग्रवाल जी , लंदन में रहती हैं । बहुत सीधी और सरल महिला हैं । उत्तर प्रदेश के पीलीभीत में पूरनपुर की रहने वाली हैं । लखनऊ में पढ़ी-लिखी हैं । शौक़िया कविताएं लिखती हैं । उन्हों ने फ़ेसबुक पर अपनी कविताओं के प्रकाशन के बाबत सार्वजनिक रूप से अपनी वाल पर 12 नवंबर , 2013 को कुछ चिंताएं जताईं । बस अरुणचंद्र राय ने उन्हें लपक लिया और उन्हें इन बाक्स संदेश भेजा और लिखा :

''आप बिलकुल ठीक कह रही हैं। कई गलतियां मुझसे भी हुई हैं। लेकिन चूँकि मैं स्वयं लेखक/कवि हूँ मैं लेखक का पक्ष पहले सोचता हूँ , प्रकाशक मेरी दूसरी प्राथमिक है। कुछ बाते जो मुझे औरों से अलग करती हैं : मैं भारत सर्कार में सहायक निदेशक हूँ इसलिए प्रकाशन मेरा पैशन है , व्यापर या दाल रोटी का साधन नहीं। अच्छा साहित्य पढ़ना मेरी रूचि में शामिल है इसलिए ही संजीव स्वयं प्रकाश सुधा अरोड़ा असगर वजाहत जैसे समकालीन कहानी और साहित्य के बड़े नामो को प्रकाशन शुरू होने के प्रथम वर्ष में ही प्रकाशित करना सम्भव हो सका है क्योंकि मैं उनका पाठक पिछले बीस वर्षो से हूँ। मेरी कवितायेँ हंस, पाखी, वसुधा, वागर्थ में प्रकाशित होती रही हैं। मेरी कहानी और समीक्षाएँ भी प्रकाशित हुई हैं। 

इसलिए मैं समझता हूँ कि लेखन क्या है और एक लेखक की क्या उम्मीदें होती हैं प्रकाशक से। मैंने कई रचनाकारो को अग्रिम रूप से रॉयल्टी दी है , जिन्हे इनकी जरुरत थी। ओम प्रकाश वाल्मीकि हिंदी के प्रमुख लेखक हैं। उनकी कोई किताब अभी नहीं आई लेकिन मैंने उनकी यथा सम्भव सहायता की हैं क्योंकि वे कैंसर से पीड़ित हैं। इस लिए आप निश्चिन्त रहे। आपकी रचना पाठको तक पहुचेगी। प्रोडक्शन के लिए पंद्रह हज़ार रूपये की सहायता लूंगा। जो मैं आपको अधिक से अधिक एक वर्ष के भीतर लौटा दूंगा। चाहे किताबें बिके न बिके। ये मैं बाल पुस्तक के लिए कह रहा हूँ। इस राशि के साथ साल भर में बिकी किताबो के प्रिंट मूल्य पर आपको १०% की रॉयल्टी दूंगा। आम तौर मैं ५०० किताबे प्रकाशित करता हूँ। भविष्य में भी बिकी पुस्तको पर आपको बिन बोले रॉयल्टी मिलेगी। और यही मुझे स्थान दिलाएगी हिंदी प्रकाशन जगत में। २०१४ में किताब मेला जिनमे मैं भाग ले रहा हूँ वे हैं - दिल्ली, शिमला, मुम्बई , लकनऊ, जयपुर , चंडीगढ़, पटना, भोपाल, विलासपुर , रायपुर आदि 

 नोट : प्रोडक्शन में सहायता इसलिए ले रहा हूँ कि मुझे थोड़ी सहूलियत हो जायेगी और आपके लिए यह अफोर्ड करना बहुत बड़ी बात नहीं है। हिन्द युग्म से प्रकाशित आपके कविता संग्रह को मैंने ख़रीदा हुआ है। इसलिए मैं आपसे बहुत पहले से परिचित हूँ।''

शन्नो अग्रवाल जी , अरुण चंद्र राय की इन लच्छेदार बातों में आ गईं । फिर 13 जनवरी , 2014  को इस चार सौ बीस अरुण चंद्र राय ने शन्नो अग्रवाल जी को अपने बैंक का डिटेल्स बताते हुए लिखा :

आदरणीय शन्नो जी 
 नमस्कार
 किताब प्रकाशित होने के लिए तैयार है। कवर बनाना शेष है। बाबूजी के निधन के कारन थोडा विचलित हूँ। लेकिन जीवन में तो लौटना होता ही है। आप फ़ोटो और परिचय भिजवाइये जल्दी। खामोश ख़ामोशी और हम की पांच प्रतियां भिजवा दी थी। मिल गई होगी। आप दिखवा लीजियेगा। पूर्व में जैसी बात हुई थी , हो सके तो १५,००० रूपये भिजवा दीजिये। बैंक डिटेल संलग्न है। यदि बाबूजी का निधन न हुआ होता तो शायद इसकी जरूरत नहीं पड़ती लेकिन अभी बैकफुट पर हूँ। पुस्तक मेले के बाद मार्च में इसे लौटा दूंगा। किताबे बिकी तो रॉयल्टी भी।'' 

आपका अरुण 

Arun Chandra Roy state bank of india, indirapuram branch saving account no. 32395214006
Bank: STATE BANK OF INDIA
Address: PLOT NO. 13, NITIKHAND FIRST, INDIRAPURAM, GHAZIABAD 201010 State: UTTAR PRADESH District: GHAZIABAD Branch: INDIRAPURAM Contact: BM MOB-9911063011

अरुण चंद्र राय की इन लच्छेदार बातों में आ कर शन्नो अग्रवाल जी ने  17 जनवरी 2014 को उन के बैंक अकाउंट में उन्हें 15000 रुपए  भेज दिए ।

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शन्नो अग्रवाल
अब पैसा पाने के बाद इस अरुण चंद्र राय ने शन्नो अग्रवाल के इन बाक्स संदेश  का जवाब देना और फ़ोन उठाना बंद कर दिया । शन्नो जी , कुछ दिन पहले यह व्यथा मुझे बताई और कहा कि यह व्यक्ति फ़ेसबुक पर मेरी भी मित्र सूची में है , क्या मैं इस व्यक्ति को जानता हूं ? मैं ने कहा कि नहीं । पर आप लिंक दीजिए , फ़ोन  नंबर दीजिए । मैं बात करने की कोशिश करता हूं । फिर मैं ने अरुण चंद्र राय से फ़ोन पर इस बाबत बात की । यह जून , 2015 के शुरुआत में किसी ताऱीख को बात हुई । अरुण चंद्र राय ने कहा कि लंदन तो नहीं पर पूरनपुर , लखीमपुर के उन के पते पर जुलाई के पहले हफ़्ते में किताब हर हाल में भेज दूंगा । पर अगस्त आ गया , किताब उन्हों ने नहीं भेजी । फिर मैं ने उन्हें फ़ोन किया और उन की लानत-मलानत की । जो-जो नहीं कहना चाहिए , वह भी कह दिया । फुल वॉल्यूम में मैं ने बात की । फिर वह बेशर्मों की तरह माफ़ी मांगने लगे और बोले अगले हफ़्ते  हर हाल में किताब भी भेज दूंगा और कि उन का पैसा भी लौटा दूंगा । लेकिन बीत गया , फिर भी किताब नहीं भेजी । अब अरुण चंद्र राय ने मेरा भी फ़ोन उठाना बंद कर दिया । फ़ेसबुक पर मैं ने इनबाक्स संदेश दिया। बातचीत देखें :

  • Conversation started August 27
  • Dayanand Pandey
    8/27, 3:41pm
    Dayanand Pandey

    namaskar
    shanno ji ki kitab bhej di kya ?
  • Arun Chandra Roy
    8/27, 3:43pm
    Arun Chandra Roy

    namaskar
    bheji nahi hai
    agle saphtah bhej dunga
    is pure mahine dilli me nahi tha
    abhi aayaa hoon
  • Dayanand Pandey
    8/27, 3:43pm
  • September 3
  • Dayanand Pandey
    9/3, 6:45pm
    Dayanand Pandey

    नमस्कार
    शन्नो जी को किताब भेज दी क्या ?
  • September 7
  • Dayanand Pandey
    9/7, 3:23pm
    Dayanand Pandey

    shanno ji ki kitab kab tak bhej rahe hain ?
  • September 17
  • Dayanand Pandey
    9/17, 6:40pm
    Dayanand Pandey

    नमस्कार
  • September 18
  • Dayanand Pandey
    9/18, 4:22pm
    Dayanand Pandey

    shanno ji ki kitab ka kya huwa?
  • September 19
  • Dayanand Pandey
    9/19, 10:43pm
    Dayanand Pandey

    आप तो साँस ही नहीं ले रहे ?
  • Friday
  • Dayanand Pandey
    10/16, 4:50pm
    Dayanand Pandey

    shnno ji ko kitab abhi tak nahin mili hai. aur ki aap ph bhi nahin utha rahe
    kuch kahna chahenge ?
  • Dayanand Pandey
    10/16, 6:48pm
    Dayanand Pandey

    किताब नहीं मिली शन्नो जी को
  • Today
  • Dayanand Pandey
    12:13pm
    Dayanand Pandey

    आप अब अति कर रहे हैं , झूठ पर झूठ बोल रहे हैं . किताब भेजी ही नहीं. शर्म कीजिए. मुझे लगता है कि किताब छापी भी नहीं है . अब इतना भी मजबूर मत कीजिए कि थाना पुलिस करनी पड़े आप के खिलाफ . आखिर शन्नो अग्रवाल जी से पैसा लिया है आप ने किताब छापने के लिए. बहुत हो गई चार सौ बीसी आप की. फोन करने पर फोन उठाएंगे नहीं आप . किताब छापेंगे नहीं . पैसा लौटाएंगे नहीं . अब जब पुलिस के साथ आप के घर आऊंगा तभी आप की समझ में आएगा.
  • Dayanand Pandey
    1:06pm
    Dayanand Pandey

    bahut besharm hain aap
  • Today
  • Dayanand Pandey
    7:21pm
    Dayanand Pandey

    चोर आदमी ! फोन उठाता नहीं , फेसबुक पर दिए मेसेज का जवाब देते नहीं . पब्लिकली नंगा करूँ और पुलिस में मामला दर्ज करूँ ?
  • Dayanand Pandey
    7:31pm
    Dayanand Pandey

    कमीनेपन की भी हद होती है


    अरुण चंद्र राय
    अब जब भी फ़ोन करता हूं तो अरुण चंद्र राय फोन नहीं उठाते । फ़ेसबुक पर किसी संदेश का जवाब नहीं देते । जब फ़ोन बहुत हो जाता है तो एस एम एस आता है कि मैं बाद में फ़ोन करता हूं । लेकिन आज तक कभी फोन पलट कर नहीं किया अरुण चंद्र राय ने । फोन पर भी ऐसे बहुत से एस एम एस पर उन की लानत-मलानत की । अंट -शंट लिखा । जो-जो नहीं लिखना चाहिए लिखा । लेकिन यह बेशर्म अरुण चंद्र राय चोरों की तरह मुंह छुपाता घूम रहा है । शन्नो जी को आज सारी स्थिति बताई । फिर लंदन से उन का फ़ोन आया । विस्तार से बात हुई । लेकिन अभी देखा कि बहुत व्यथित हो कर उन्हों ने एक पोस्ट लिखी है । उस पर मैं ने अरुण चंद्र राय को टैग कर एक कमेंट लिखा । लेकिन इस बेशर्म ने फिर कोई सांस नहीं ली । शन्नो जी की पोस्ट देखें :

    खाली राजनीती ही नहीं बल्कि और जगह भी डकैत और भ्रष्ट लोग मिलेंगे l प्रकाशन भी इससे अछूता नहीं है l बात कड़वी पर सच है l
    -शन्नो अग्रवाल
    Comments
    Nishant Gupta
    Nishant Gupta Kya ho gaya mam...
    Mukutdhari Agrawal
    Mukutdhari Agrawal आज तो कई प्रकाशक लेखको से शोषक बने हुये हैं ।रायल्टी के नाम पर कुछ देना नहीं उल्टे पुस्तक प्रकशन का खर्च भी लेखक बरदास्त करे ।
    Like · Reply · 1 · 2 hrs
    Dayanand Pandey
    Dayanand Pandey Arun Chandra Roy नाम का यह व्यक्ति ही तो वह डकैत नहीं है ? Ajit Rai जी , ध्यान दीजिए l यह आदमी जो अपने को आप का मित्र बताता है , आप के साथ अपनी फ़ोटो दिखाता है , बिहार , दरभंगा और प्रकाशन जगत को बदनाम कर रहा है l भारत सरकार में अपने को सहायक निदेशक बताता है , पैसे ले कर भी किताब नहीं छाप रहा है l दो साल से टरका रहा है l जाने कितनों को फ़ेसबुक के मार्फ़त लूट चुका है l चंद्रेश्वर पाण्डेय जी , आप भी गौर कीजिए l और इस आदमी को आईना दिखाईये l
    Like · Reply · 1 · 2 hrs
    Brijendra Dubey
    Brijendra Dubey जी मैम.... जित देखो तित लाल वाला मामला है
    Like · Reply · 1 · 2 hrs
    Kavita Vachaknavee
    Kavita Vachaknavee आपके वाला तो चोर है पक्का
    Like · Reply · 1 hr
    Kanta Patel
    Kanta Patel सच कहा शन्नोजी …तू डाल डाल , मै पात पात ।
    Like · Reply · 1 hr
    प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
    प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल सच्ची कडवी हकीकत .....
    Dayanand Pandey

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    अब यह सारा व्यौरा आप मित्रों के सामने परोसने का मक़सद इतना भर है कि इस चोर और मक्कार अरुण चंद्र राय जैसे लुटेरों से बाक़ी लोग तो बच लें । क्यों कि किताब छापने के नाम पर चिकनी-चुपड़ी बातें कर फ़ेसबुक पर उपस्थित लोगों को लूटने वाला यह अरुण चंद्र राय अकेला नहीं है । बहुतेरे हैं । लोग इन मक्कारों , चोरों और चार सौ बीसों से सावधान रहें । हो जाएं । और जान लें कि पैसा दे कर किताब छपवाने की प्रवृत्ति गलत है , अपराध है । और कि इन डकैतों के चंगुल से बच सकें । इन की ठगी से बच सकें । बाद इस के भी अगर कोई आंख पर पट्टी बांध कर रहना चाहता है तो उसे उस का यह चयन मुबारक़ ! लेकिन अरुण चंद्र राय के ख़िलाफ़ तो गाज़ियाबाद जा कर मैं जल्दी ही पुलिस में रिपोर्ट लिखवाने वाला हूं , शन्नो अग्रवाल जी के बिहाफ़ पर । फिर क़ानून अपना काम करेगा । जनता-जनार्दन और आप मित्रों की अदालत में तो यह रिपोर्ट आज लिख ही दी है । जनता और आप मित्र अपना काम करें । आमीन !



    एकदम बाएं अरुण चंद्र राय
     


17 comments:

  1. बिल्कुल सही टिप्पणी है ।मुझे भी चार साल से बेवकूफ बना रहा है।

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    1. बन्धु आप कैसे इस चोर के चक्कर में पड़ गये ? तब इस के ख़िलाफ़ पुलिस में रपट लिखवाइये ।

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  2. जब एक लेखक राजनीति में पहुँच कर घुटने टेक सकता है तो प्रकाशन के नाम पर डकैती कोई बड़ी बात नही है

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  3. जब एक लेखक राजनीति में पहुँच कर घुटने टेक सकता है तो प्रकाशन के नाम पर डकैती कोई बड़ी बात नही है

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  4. सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा17 October 2015 at 23:12

    हर जगह लफंगई और मक्कार लोगों ने ईमानदारी का डब्बा गोल कर दिया है . इसका कोई इलाज बहरहाल नजर नहीं आता .....गाजियाबाद में नित्यानंद तुषार ( जो एक गजल - बीमार आदमी है) एवं गाजियाबाद के एक अन्य प्रकाशक ( जिसका कुछ लेखक साथ देते हैं ) , भी लेखक के साथ कुछ - कुछ ऐसा ही खेल खेलते हैं - कुछ कम , कुछ ज्यादा हो सकता है बस पर हाल बुरा ही है .इसका कारण है लेखकों के बीच गुटबाजी और सुविधा - परस्ती के कीड़े . अपने अलावा और अपनी विचारधारा के अलावा सब कूड़ा .

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  5. ऐसे प्रकाशकों से शिष्टता से पेश आना जैसे गुनाह है l कुछ किताबें प्राप्त करने के लिये नाकों चने चबाने पड़ते हैं l

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  6. इस अरुण चन्द्र रॉय के कारनामों पर तो मैं 2011 में पहले ही कहानी लिख चुका हूँ :-)

    http://www.hansteraho.com/2011/07/1_10.html

    http://www.hansteraho.com/2011/07/blog-post_11.html

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  7. इस अरुण चन्द्र रॉय के कारनामों पर तो मैं 2011 में पहले ही कहानी लिख चुका हूँ :-)

    http://www.hansteraho.com/2011/07/1_10.html

    http://www.hansteraho.com/2011/07/blog-post_11.html

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  8. बहुत अच्छा हुआ जो हमने किताब वापस ले ली , वर्ना ये महोदय किताब का क्या हश्र करते - सोचकर सिहर उठता हूँ .

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  9. He did the same thing with my mother . I have a similar correspondence with me. It was my guts and help of some bloggers that I could make him publish the book. Such a waste he made that book did not even publish the name of authors on the cover page. And he says he is in govt job. He runs this publishing business in name of his wife. He comes up with new set of "Bahana" every time. I am so happy that someone has written this post .


    the correspondence i have is for the year 2012 and 2013 and that is when he said his father had expired

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  10. आज यह सब पढ़कर आश्चर्य तो नही पर तसल्ली हो रही है कि मेरे मन में जो अरुणराय के बारे में बार बार जो राय बन रही थी वह गलत नही थी .पहली पांडुलिपि उन्होंने बड़े आग्रह से माँगी थी .मैंने उनके कथनानुसार पन्द्रह हजार रुपए भेज दिये थे हालाँकि छह माह वे परिस्थितियों का हवाला देते रहे लेकिन हद तो तब होगई जब पुस्तक मेले में विमोचन की बात कहते हुए मुझे आने का आम्ंत्रण दे दिया मैं जा नही पाई . मुझे ज्ञात हुआ कि वहाँ आदरणीय सतीश जी गए थे . मैंने उनसे पुस्तक के बारे में पूछा तो उनसे पता चलााा कि पुस्तक थी ही नही . इसके बाद अरुणराय ने फोन उटाना ही बन्द कर दिया . मेरे पास कोई चारा नही था तब हार कर मैंने आदरणीय सतीश जी और सलिल भैया को अपनी परेशानी बताई .मैं अब मानती हूँ कि उनके दबाब ही शायद मुझे अपनी पुस्तक मिल सकी लेकिन सिर्फ 70 प्रतियाँ . 30 उन्होंने कहकर भी ही भेजीं आजतक . मैं बैंगलोर से वहीं के पते पर भेजने का आग्रह करती रही और वे मार्च से सितम्बर सात माह बस-- भेज रहा हूँ --.कहते निकाल दिये . अन्तिम बार तो रजिस्टर्ड डाक से भेजने की बात की थी जो डेढ़ माह तक भी नही पहुँची है . यानी कि फिर एक झूठ . काश अरुणराय अपनी जुबान के सच्चे होते .
    दूसरी किताब भी यह कहकर कि जो हुआ आगे नही होगा ,अरुणराय ने मँगाली और यह कहकर कि पुस्तक का विमोचन विश्वपुस्तक मेले में करेंगे आप आइये ,दसहजार रुपए एडवांस में माँगे . एडवांस भेजने से पहले मैंने पूछा -आप मुझे दिनांक बताएं कि किस दिन विमोचन करने वाले हैं इसके बाद अरुण रायका फोन जैसे डेड होगया . मैं दूसरे नम्बर से फोन करती तो फोन तो उठा लेते पर आवाज सुनते ही काट देते . यह बात भी मैंने सलिल भैया को बताई .उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से ऐसा कुछ कहा जिसे अरुणराय ने समझ लिया कि किसके लिये कहा गया है . इसके बाद संवाद यह किया कि मेरी पुस्तक नही छाप रहे . पांडुलिपि अभी भी ज्योतिपर्व प्रकाशन के पास है .

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  11. ओह्ह्ह्ह ..... वैसे उनकी ये करतूत किताब छपने तक ही रहती है या फिर किसी और के संग्रह क्व साथ भी वो tempering कर सकते हैं ? कृपया अवगत कराएँ .

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  12. जब मैं नया नया लेखन के क्षेत्र में घुसा था तो मैं भी इसके चक्कर में फँस चुका हूँ | इस चोर ने मेरे भी दस हजार रुपए हड़प लिए हैं |

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  13. चोरी करके दबंगई भी दिखाता है |

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