Sunday 25 October 2015

धर्म की धज्जियां उड़ाने के बाद कालीचरण स्नेही का घुटने टेक , शीश नवा कर पुरी मंदिर में दर्शन करना !

हमारे समाज में ऐसे बहुतेरे लोग हैं जो सामाजिक जीवन में कुछ हैं और व्यक्तिगत जीवन में कुछ और। एक समय तिलक और टोपी की राजनीति में प्रासंगिकता बताने वाले समाजवादी विचारों की राजनीति की दावा करने वाले नीतीश कुमार अगर तांत्रिक की बाहों में दिख रहे हैं तो यह कोई नई बात नहीं है । सिद्धांत में कुछ , व्यवहार में कुछ वाले बहुतेरे हैं । 


जैसे कि हमारे लखनऊ विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में एक आचार्य हैं कालीचरण स्नेही। वह दलित हितों के लिए राष्ट्र के ख़िलाफ़ जाने की हिमायत भी करते हैं। यह उन की कांस्टीच्वेंसी है। किसी मंच से जब बोलते हैं तो विषय कोई भी हो ब्राह्मण और हिंदू धर्म उन के ख़ास निशाने पर आ जाते हैं। लगभग आग लगा देते हैं अपने तेजाबी भाषण से । इतना कि कई बार वह पिटते-पिटते बचते हैं। आयोजक बमुश्किल उन्हें बचाते हैं। यह आए दिन की बात है । लेकिन कुछ दिन पहले वह पुरी गए एक सेमीनार में। सर्वदा की तरह वह वहां भी हिंदू धर्म और ब्राह्मण को निशाने पर ईंट से ईंट बजाने लगे। लगभग गाली-गलौज की हद तक। लोग उन्हें पीटने के लिए मंच पर पहुंच गए। आयोजकों को बड़ी मशक्कत करनी पड़ी उन्हें बचाने के लिए। खैर कार्यक्रम खत्म हो गया। तो बाहर से आए वक्ता पुरी मंदिर जाने के लिए इकट्ठा होने लगे । आयोजकों ने गाड़ी आदि की व्यवस्था की । जाने वालों की संख्या गिनी । और मान कर चले कि कालीचरण स्नेही तो किसी हाल में नहीं जाने वाले। फिर भी औपचारिक रूप से उन से चर्चा करते हुए पूछा कि आप तो जाएंगे नहीं। लेकिन कालीचरण स्नेही ने ही-ही करते हुए कहा कि वह भी जाएंगे पुरी मंदिर के दर्शनार्थ ! सुन कर लोग चकित हो गए। लेकिन कालीचरण स्नेही न सिर्फ़ पुरी मंदिर गए , पूरे भक्ति भाव से पंक्तिबद्ध हो कर , घंटों अपनी बारी की प्रतीक्षा की। घुटने टेक कर , शीश नवा कर दर्शन किए। लखनऊ विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष सूर्य प्रसाद दीक्षित के पीछे-पीछे चलते हुए सारे पूजन आदि कार्य किए । मैं ऐसे कई अन्य वामपंथी मित्रों को जानता हूं जो सार्वजनिक मंचों से पूजा आदि , ब्राह्मण आदि , धर्म आदि की ऐसी-तैसी करते हैं। पूरी चीख़-पुकार के साथ। लेकिन व्यक्तिगत जीवन में ख़ूब पूजा-पाठ नियमित तौर पर करते हैं। आरती-पूजन और तमाम अन्य षटकर्म पूरे विधि-विधान से करते मिलते हैं । किस-किस का नाम लें , किस-किस का न लें । लेकिन यह हिप्पोक्रेसी निन्यानबे प्रतिशत लोगों को करते देखता , पाता हूं। पितृपक्ष या मलमास में नहीं देखा आज तक किसी भी को विवाह आदि मांगलिक कार्य करते हुए । कोर्ट मैरिज तक नहीं । जीवन में कुछ , जेहन में कुछ ? जित देखो , तित कालीचरण स्नेही ।

यह लिंक भी पढ़ें : 

1. तो दलित हितों के लिए वह राष्ट्र के खिलाफ़ भी जाएंगे 

 

2. तो दंभी भंगी कालीचरन स्नेही दलित आतंकवादी हैं ?


1 comment:

  1. मैने ऐसे ब्राह्मण भी देखे हैं जो प्रखंड धार्मिक और जातीय दम्भ से भरे होते हैं पर मतलब के लिए उन लोगों के पैरों में लोटने लगते हैं जिन्हें हमेशा नीच और अधर्मी कहते रहे। स्नेही जी सच बोलते हैं तो मिर्ची लगना स्वभाविक है।

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