Sunday 29 November 2015

इन जहरीले लोगों की दुकान बंद कीजिए इन्हें उपेक्षित कर के , ख़ुद-ब-ख़ुद यह अपनी मौत मर जाएंगे

कुछ लोग समाज में होते हैं जिन पर बात करना या जिन की बातों पर बात करना सिर्फ़ वक्त ख़राब करना ही होता है। हर क्षेत्र में ऐसे लोग और ऐसी बात करने वाले उपस्थित हैं । यह अपने क़िस्म के तालिबानी लोग हैं । जातीय और धार्मिक जहर में लिपटे यह लोग प्रिंट में भी हैं , चैनल में भी , नेट पर भी , सोशल साइट्स आदि पर भी । यह ज़्यादातर पेड लोग हैं । किसी का नाम लेना यहां अभी ज़रूरी नहीं लग रहा । आप मित्र लोग ख़ुद इन नामों को जानते हैं । बहुत अच्छी तरह से जानते हैं । ज़रूरत पड़ने पर इन लोगों के नाम फ़ोटो सहित भी रख दूंगा आप सब के सम्मुख । क्यों कि मुट्ठी भर ही ऐसे लोग हैं । अब एक मछली जैसे पूरे तालाब को गंदा करने के लिए काफी होती है , सो यह लोग उसी मछली की भूमिका में उपस्थित हैं । लेकिन वैचारिक हिंसा के अभ्यस्त यह लोग जगह-जगह शिकार बड़ी संजीदगी से तजवीज करते हैं।

दिल और कान निकाल कर फेंक चुके इन लोगों से किसी विमर्श में उलझना दीवार में सिर मारना है । क्यों कि इन के पास सिर्फ़ दो चीज़ होती है । एक मनबढ़ दिमाग होता है दूसरे , अराजक मुंह। एकतरफा बात करने के लिए । कुतर्क करने के लिए । सो इन लोगों की बात का जवाब देना या इन के विमर्श में हस्तक्षेप करना अपने को , अपने समय को नष्ट करना होता है। लेकिन जब तक यह सब समझ में आता है तब तक इन लोगों का कार्य आप सिद्ध कर चुके होते हैं। आप आजिज आ कर इन सब चीजों से अलग होते हैं तब तक कुछ दूसरे नए लोग इन का कार्य सिद्ध करने के लिए कूद चुके होते हैं। इन की दुकान दिन-ब-दिन बड़ी होती जाती है। इन की फंडिंग और बढ़ जाती है। यह लोग कभी असुविधाजनक प्रश्न का जवाब देना अपनी तौहीन समझते हैं । कई बार इन के छुट्टा कुत्ते ही अबे-तबे की भाषा में जवाब देते मिलते हैं । ज़्यादातर फर्जी आई डी वाली प्रोफाइल से । और जब ज़्यादा मुश्किल आती है , असुविधा होती है तो पोस्ट मिटा देते हैं ।

यह लोग एक अतार्किक विमर्श रचते हैं और जेब में सैकड़ों दियासलाई रखते हैं। अपने विमर्श को सुलगाने के लिए । आप अनजाने इन के हवन में होम होने के लिए सहर्ष उपस्थित होते रहते हैं। किसी दीवाने पतंगे की तरह जल मरने के लिए इन के जाल में फंसते जाते हैं । मैं पूछता हूं ऐसा क्यों करते हैं आप लोग ? बंद कीजिए इन के जाल में फंसना। बंद कीजिए इन जालसाजों की दुकान को प्रमोट करना। 

यह लोग विज्ञापनी सभ्यता में बहुत ही निपुण होते हैं । यह जानते हैं कि कैसे एक कुतर्क रच कर किसी को भड़काया जा सकता है । कैसे लोगों को भड़का कर समाज में जहर घोला जा सकता है । जहरीले विमर्श को कैसे लंबा खींचा जा सकता है । इस काम के लिए वह कोई धार्मिक मसला उठा लेते हैं । कोई जातीय मसला उठा लेते हैं । कुतर्क का सीमेंट और जहर का लोहा ले कर वह अपना शो रूम सजा कर बैठते हैं । जिसे तोड़ना या भेदना किसी सज्जन या सुतर्क करने वाले व्यक्ति के लिए लगभग नामुमकिन होता है । तब और जब उन के सेल्स मैनों की एक भारी भरकम फ़ौज भी हो उन के साथ । कुतर्क और गाली-गलौज करने के लिए । इस लिए भी कि अगर आप किसी फ़िल्म या किसी किताब की समीक्षा पढ़ कर बतियाने वाले से फ़िल्म देख कर या किताब पढ़ कर बात करेंगे तो वह आप से कैसे बात करेगा या आप उस से कैसे बात कर पाएंगे , यह बात आप बेहतर समझ सकते हैं । यह मुश्किल बार-बार पेश आती रहती है । गरज यह कि इन अपढ़ और साक्षर किस्म के लोगों से बात करना , बहस करना आप को सिर्फ़ तकलीफ़ देता है । हां, उन के अहंकार को खाद-पानी भी देता है । मूर्खों को जब अपने ज्ञानी होने का भान हो जाता है तब तो और मुश्किल । इस लिए भी कि कोई भी जानकार , ज्ञानी सब कुछ कर सकता है पर समाज में जहर घोलने वाली बात हरगिज नहीं करेगा ।

अब आप पूछेंगे कि इन जहरीले लोगों से कैसे निपटा जाए ? इन को कैसे समाप्त किया जाए । मित्रो , बहुत आसान है इन को समाप्त करना । इन से निपटना । थोड़ा कठिन ज़रूर है पर यह बहुत कारगर । वह यह कि इन की नोटिस लेना बिलकुल बंद कर दें । इन के किसी भी विमर्श का हिस्सा भूल कर भी न बनिए। इन से प्रतिवाद मत कीजिए । इन को इन के हाल पर छोड़ दीजिए । ख़ुद-ब-ख़ुद यह अपनी मौत मर जाएंगे। बड़े-बड़े बंडल बन कर कबाड़ी के यहां भी नहीं बिकेंगे । समूची मंडली नेस्तनाबूद हो जाएगी । गंदी नाली में पड़े मानवी-वानवी कह-कह कर अपना पराक्रम , ज़िद और फ़ालतू की जद्दोजहद भी भूल जाएंगे। बस आप इन को और इन के कुतर्क को एक बार पूरी तरह उपेक्षित कर के तो देखिए। इन की नोटिस लेना बंद तो कीजिए । नतीज़ा सचमुच सुंदर निकलेगा । दुनिया और सुंदर हो जाएगी। हां , यकीन मानिए इन दुकानदारों की दुकान निश्चित रूप से बंद हो जाएगी। उस से भी बड़ी बात यह कि समाज में निरंतर फैलाए जा रहे जहर पर लगाम लग जाएगी । यह बहुत ज़रूरी है । 

साथ ही एक बात और भी कहना चाहता हूं कि किसी भी समाज में तमाम अंतर्विरोध , विसंगतियां या कुरीतियां हो सकती हैं । हैं ही । उन्हें समाप्त भी करना बहुत ज़रूरी है । उन पर चोट भी बहुत ज़रूरी है । पर क्या किसी की मां-बहन कर के ? बिलकुल नहीं । याद कीजिए कबीर को , राजा राममोहन राय को , विद्यासागर को , स्वामी दयानंद सरस्वती को । मदन मोहन मालवीय को , तिलक को , महात्मा गांधी को । मौलाना अबुल कलाम आज़ाद , अंबेडकर , सर सैयद अहमद ख़ाँ , लोहिया , जे पी , ए पी जे अब्दुल कलाम को । यह और ऐसे अनगिन नाम हैं । पर क्या समाज सुधार के लिए इन लोगों ने गाली-गलौज की ? जहर फैलाया समाज में ? बिलकुल नहीं । पर पूरी तन्मयता और सदाशयता से यह लोग अपने काम में लगे रहे और समाज की तमाम कुरीतियों को खत्म किया । जानते हैं क्यों ? क्यों कि यह लोग सचमुच के समाज सुधारक थे । किसी फंडिंग आदि के लिए समाज में जहर बोने के लिए पैदा नहीं हुए थे । 

3 comments:

  1. बहुत सुंदर तरीके से बात रखी है:
    ''साथ ही एक बात और भी कहना चाहता हूं कि किसी भी समाज में तमाम अंतर्विरोध , विसंगतियां या कुरीतियां हो सकती हैं । हैं ही । उन्हें समाप्त भी करना बहुत ज़रूरी है । उन पर चोट भी बहुत ज़रूरी है । पर क्या किसी की मां-बहन कर के ? बिलकुल नहीं ।''
    निष्पक्ष होकर ऐसा मानवीय कार्य करने के लिये हिम्मत वाले लोगों की जरूरत है l

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  2. प्रणाम सर बहुत सुंदर

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  3. यह लेख मुझे बहुत अच्छा लगता है। 20 बार पढ़ चुका हूं प्रणाम सर

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