Tuesday 24 November 2015

इनामों को वापस करने से क्या होगा

इनामों को वापस करने से क्या होगा 
अखबारों में जीने मरने से क्या होगा 
कलम तुम्हारे लिखना-लिखाना भूल गए हैं 
नाइंसाफी से टकराना भूल चुके हैं 
घर से निकल के बाहर आओ 
चल कर धूप से हाथ मिलो 
या फिर अपना गुस्सा ले कर 
उजड़े हुए बगदाद में जाओ 
और किसी लिखने वाले के धूल भरे जूते से पूछो 
कैसे दर्द लिखा जाता है 
कैसे बात कही जाती है 

निदा फाजली
संयोग है कि यह नज्म निदा फाजली ने लिखी है। जिन लाहौर नईं देख्या के हर दिल अजीज लेखक असगर वजाहत फ़ेसबुक पर रोज लिख रहे हैं । अगर यह सब कोई हिंदू नामधारी लिखता है तो असहिष्णुता के बुखार में तप रहे कुछ बीमार लोग उसे संघी घोषित कर देते हैं। इन लोगों के पास हर बात का एक ही प्रतिवाद है कि यह तो संघी है । बीमार लोग जब -तब यह सब करते ही रहते हैं । जो उन की बात न माने , उन की राय से असहमत हो जाए वह संघी है । सेक्यूलरिज्म और सहिष्णुता के नाम पर देश में एक नए फासीवाद का जन्म हुआ है । तानाशाही की यह नई इबारत है , नई खिड़की है । जो सहिष्णुता की चादर पर नित नए तोहमत , नित नए दाग़ लगाने पर आमादा है । क्या राजनीति , क्या साहित्य , क्या फ़िल्म। लोग भूल गए हैं कि राजनीति सेवा करने के लिए बनी है , जहर फैलाने के लिए नहीं ।  साहित्य समाज को जोड़ने के लिए बना है , तोड़ने के लिए नहीं । सिनेमा समझ,  संदेश और मनोरंजन के लिए बना है । अगर देश में सचमुच असहिष्णुता होती तो सलमान खान , आमिर खान और शाहरुख खान हिंदी फिल्मों के सितारे नहीं होते । दिलीप कुमार आज भी सरताज हैं । रहेंगे । अगर आप किसी से किसी बात पर असहमत हैं , असहमति जताने में कोई हर्ज नहीं है । विरोध करना चाहते हैं तो खुल कर कीजिए कोई हर्ज नहीं है । पर अपने देश को , अपने समाज को इस कदर कटघरे में खड़ा कर ख़ुद को जूता तो मत मारिए। यह देश आप का अपना देश है । अगर कुछ ग़लत हो गया है या हो रहा है तो अपना हाथ बढ़ा कर उसे दुरुस्त कीजिए। देश को संवारिये , सहेजिये । यह क्या कि देश छोड़ कर चले जाएंगे। एक बड़े लेखक अनंतमूर्ति ने बीते लोक सभा चुनाव में यह अश्लील बयान दिया कि अगर भाजपा जीत गई और नरेंद्र मोदी प्रधान मंत्री बन गए तो मैं देश छोड़ दूंगा । यह क्या बात हो गई भला ? आमिर खान ने अब इस कहे को और विकृत कर दिया है । पुरस्कार वापसी जैसा कोढ़ जैसे कम पड़ गया था जो लोग अब देश छोड़ने की बदतमीजी भरी धमकी दे कर आकाश पर थूकने की क़वायद में लग गए हैं । अगर आप को नरेंद्र मोदी या भाजपा से चिढ़ है तो वह बरकरार रखिए। पर साथ ही यह भी स्वीकार करना सीखिए कि यह देश आप का भी उतना ही है जितना कि किसी नरेंद्र मोदी का । पर आप जब भारत को अपना देश ही मानने को तैयार नहीं हैं तो फिर आप की इस बीमारी का इलाज हकीम लुकमान के पास भी नहीं है । माफ़ कीजिए यह देश के साथ गद्दारी ही है । लेकिन हो क्या गया है कि मुट्ठी भर हिप्पोक्रेसी में आकंठ डूबे हुए कुछ लोग , एकतरफा सोचने वाले बीमार लोग , राजनीतिक लड़ाई में हार कर यह फासिस्ट लोग असहिष्णुता की चालीसा ऐसे पढ़ रहे हैं जैसे छोटे बच्चे किसी काल्पनिक भूत से डर कर चिल्ला-चिल्ला कर हनुमान चालीसा पढ़ते हैं।और भूत का कहीं नामोनिशान नहीं होता। धूमिल की एक मशहूर और लंबी कविता है पटकथा । पटकथा में वह लिखते हैं ; दरअसल अपने यहां जनतंत्र/ एक ऐसा तमाशा है। जिसकी जान/मदारी की भाषा है। धूमिल की ही भाषा जो उधार ले कर कहें तो इस समय देश में हमारे सामने ऐसा ही एक प्रधानमंत्री हमारे सामने उपस्थित है जिस की जान मदारी की भाषा में बसती है । तो क्या धूमिल ज्योतिषी थे ? वह जानते थे कि यह भी होने वाला है ? और पटकथा में यह लिख रहे थे । 

बहरहाल यह एक लंबा प्रसंग है । इस पर फिर कभी । अभी तो निदा फ़ाजली की इस नज़्म के बाद असगर वजाहत के कुछ फेसबुकिया नोट्स पढ़िए । और देखिए कि कैसे वह समाज को तोड़ने की जगह जोड़ने के भागीरथ प्रयास में निरंतर लगे हुए हैं ।



असग़र वज़ाहत के कुछ फेसबुकिया नोट्स :
असग़र वज़ाहत
आमिर खान आपकी पत्नी ने बहुत इमोशनल , भावुक और भयभीत होकर कहा होगा कि भारत में असहिष्णुता, intolerance, violence और सांप्रदायिकता की वजह से आप लोग देश छोड़कर जा भी सकते हैं. मेरे ख्याल से यह बात बिना सोचे समझे कही गयी है. आप इस देश के एक बड़े नायक हैं आप एकता, साहस और सद्भावना के प्रतीक माने जाते हैं. मीडिया के माध्यम से आपने देश को तर्कसंगत बनाया है. आप भारत की एक पहचान है. आपने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का नाम रौशन किया है. आप आमिर खान भारत में ही बने हैं. भारत के बाहर आपका कोई भविष्य नहीँ है. यहां आपके करोड़ों चाहने वाले हैं जिसमें हिंदू मुसलमान सभी शामिल है. पलायन मतलब Escape कोई हल नही है. आपके देश छोड़ देने से किसी समस्या का कोई समाधान नहीं होगा. बल्कि नफरत फैलाने वालों को ताकत मिलेगी.

इसलिए आप देश को यह एश्योरेंस दें कि आप देश छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे. जैसी भी स्थितियां होगी उनका सामना करेंगे. इस देश के करोड़ों लोग आपके साथ हैं.


‘जब “वह” बुलाये’ : एक लधु कथा 


- लो ..बेटा लो ... ये पेटी बाँध लो... ये तुम्हारे जन्नत में जाने की कुंजी है... इसमें ऐसी बारूद और ग्रेनेड भरे हैं जो दो सौ लोगों को जहन्नुम भेज सकते हैं...
- क्या करना है मोहतरम..?
- गोल चौक वाली मस्जिद चले जाओ ...वहां ... ये बटन दबा देना...
- मै भी उड़ जाऊंगा मोहतरम...
- हाँ तुम पर जन्नत के दरवाज़े खुल जायेंगे ....वहां तुम्हें हूरें मिलेंगी ...शराबे तहूरा मिलेगी...शहद और दूध की नदियाँ होंगीं ...तुम वहां हमेशां ...हमेशां के लिए रहोगे...
- आप जन्नत में नहीं जाना चाहते मोहतरम ?
- मैं ...मैं ...तो दूसरों को भेजता हूँ...
- आप बहुत बड़ा काम कर रहे हैं मोहतरम ...लेकिन आप जन्नत में कब जायेंगे ?
- जाऊंगा ....जब “वह” बुलाएगा...
- तो मोहतरम ...मैं भी उसी वक़्त जाऊँगा जब “वह” बुलाएगा...अभी तो आप भेज रहे हैं..

एक और सूफी कथा

मेरे और अशोक चक्रधर के गुरु प्रोफ़ेसर मुजीब रिजवी द्वारा सुनाई गई एक सूफी कथा
एक सूफी अपने मकतब में लड़कों को पढ़ा रहे थे उसी समय उनके एक पंडित मित्र आये जिनके नंगे शरीर पर केवल जनेऊ पड़ी हुई थी. मस्तक पर तिलक आदि लगाए हुए थे. धोती पहन रखी थी उनके पैरों में खडाऊं थी. सिर पर मोटी सी चोटी थी
उन्हें देखकर सूफी जी का एक शिष्य मुस्कुराने लगा.
सूफी जी ने पंडित जी से बातचीत की और जब पंडित जी चले गए तब सूफी ने अपने उस शिष्य से जो मुस्कुरा रहा था कहा, तुम यहां से निकल जाओ मैं तुम्हें नहीं पढ़ाऊंगा.
शिष्य ने कहा कि मुझसे क्या गलती हुई है?
सूफी ने कहा तुम जानते हो तुमने क्या गलती की है..
शिष्य ने बहुत विनती की और कहा मुझे आप न निकालें. जो सज़ा चाहें दे दें.
तब सूफी ने कहा एक ही रास्ता है. तुम कल उसी वेश से आओ जैसे आज पंडित जी आए थे और चार धाम की यात्रा करो तब मेरे पास आओ फिर मैं तुम्हें शिष्य के रूप में स्वीकार करुंगा.
शिष्य ने ऐसा ही किया और तब सूफी ने उसे अपना शिष्य स्वीकार किया.
दूसरों के विश्वासों और धार्मिक मान्यताओं को सम्मान देना हम सब का कर्तव्य है


हर प्रकार के आतंकवाद और हिंसा का विरोध करने के बाद मेरा आपसे एक सवाल है. जिस प्रकार आपने पैरिस में हुई आतंकवादी घटना में साधारण लोगों की हत्या के दिल हिला देने वाले चित्र देखें क्या उसी तरह आप सीरिया पर हुई भीषण बमबारी द्वारा हुए सामाजिक विनाश के चित्र भी देख पाए हैं? क्या यूरोप के नागरिक और एशिया के नागरिक की हत्या के लिए प्रतिरोध दर्ज करने, शोक मनाने के अलग अलग पैमाने होंगे?

यह हिंदी का सौभाग्य है कि असग़र वज़ाहत जैसे लेखक हिंदी के पास है । उर्दू का सौभाग्य है कि निदा फ़ाज़ली जैसे शायर हैं। हिंदुस्तान का सौभाग्य है कि यहां ऐसे लेखक और शायर सर्वदा रहे हैं और रहेंगे जो समाज को तोड़ने के बजाय जोड़ने में यकीन रखते हैं । किसी युद्ध , किसी विवाद या अहंकार में निबद्ध नहीं रहते । प्रणव कुमार वेद्योपाध्याय की कविता भी फ़िलहाल यहां गौरतलब है और मौजू भी :

बच्चों की किताबों में छपी
राजकुमारी की कथाओं
और इतिहास के पन्नों के बीच
एक अद्भुत समानता है
दोनो ही जगह
यह तथ्य गायब है कि युद्ध तो एक बहुत बड़ा
उद्योग है। 

 मित्रो , आप लड़िए अपना युद्ध और बनाइए इस युद्ध को अपना उद्योग लेकिन समाज और देश को बख्श कर । प्रेमचंद के गोदान में प्रोफेसर मेहता का एक संवाद याद आता है । 

मैं केवल इतना जानता हूं , हम या तो साम्यवादी हैं या नहीं हैं । हैं तो उस का व्यवहार करें, नहीं हैं तो बकना छोड़ दें । धन को आप किसी अन्याय से बराबर फैला सकते हैं, लेकिन बुद्धि को, चरित्र और रूप को, प्रतिभा और बल को बराबर फैलाना तो आपकी शक्ति के बाहर है । आप रूप की मिसाल देंगे । वहाँ इसके सिवाय और क्या है कि मिल के मालिक ने राजकर्मचारी का रूप ले लिया है ।

2 comments:

  1. बहुत बढ़िया।

    पर क्या ढोंगी इसे पढ़ेंगे भी ?

    ReplyDelete
  2. बहुत बढ़िया।

    पर क्या ढोंगी इसे पढ़ेंगे भी ?

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