Saturday 2 January 2016

बेईमानों के नाम नया साल लिखना चाहता हूं


पेंटिंग : पिकासो

ग़ज़ल  / दयानंद पांडेय

नौकरी नहीं है नया साल लिखना चाहता हूं 
बेईमानों के नाम नया साल लिखना चाहता हूं 

चार सौ बीसों के हाथ में हैं सब नौकरियां 
देशद्रोहियों के हाथ देश लिखना चाहता हूं 

तिजोरी जैसे भी हो भरती रहे तुम्हारी हरदम 
देश जाए भाड़ में यह गीत लिखना चाहता हूं

बेरोजगारी का दंश नपुंसक बना देता है 
प्रेम पत्र में यह बात ख़ास लिखना चाहता हूं

नदी कोहरा धुंध सब कुछ है इस ठंड में
माशूका नहीं है बेक़रार लिखना चाहता हूं 


[ 2 जनवरी , 2016 ]

2 comments: