Thursday 10 March 2016

साथ रोती साथ हंसा करती है बेटी तो ऐसी ही हुआ करती है



 ग़ज़ल / दयानंद पांडेय

[ दुनिया भर की बेटियों के लिए ]

दुनिया जो कहे पिता के आगे किसी की कहां सुना करती है
साथ रोती साथ हंसा करती है बेटी तो ऐसी ही हुआ करती है

कभी गोदी में थी अब कैरियर में है जैसे असमान उस का है
पंख उस के हाथों में है बैठती कहां अब तो बेटी उड़ा करती है

उस के नन्हे हाथों में जैसे सुरक्षित है हमारी ख़ूबसूरत दुनिया
बहुत आश्वस्त करती है उस की उड़ान ये दुनिया कहा करती है

बदल देगी इस जालिम दुनिया को वह यह बात पक्का जानती 
उस की आंखों में जो सपना पलता है उसे पूरा किया करती है

वो दुनिया जहन्नुम है जिस में बेटी और उस की हंसी नहीं होती
वह आंगन धन्य होता है अनन्य होता है जहां बेटी हंसा करती है

बेटियों ने बदली है बहुत दुनिया सजाया और बनाया है सुंदर इसे
कल्पना चावला हमारी याद में अब भी अंतरिक्ष में उड़ा करती है

सीता बेटी थी जनक की रावण भी हार गया था डिगा नहीं पाया
लंका की यह गर्वीली कहानी भी तुलसी की चौपाई कहा करती है

दुनिया वह सुंदर बहुत होती जिस में बेटी विश्वास से सांस लेती है
सपने जोड़ती है पंख खोलती है आसमान में निर्भीक उड़ा करती है

[ 11 मार्च , 2016 ]

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