Sunday 26 June 2016

नए दौर की लड़की ग़ुलामी से निकलना चाहती है

फ़ोटो : स्मिता पांडेय

ग़ज़ल 

अभी शादी नहीं कैरियर चाहती है पढ़ना चाहती है
नए दौर की लड़की ग़ुलामी से निकलना चाहती है

कठपुतली काया से निकल बंधन के धागे तोड़ रही 
नचाने वालों की सारी अंगुलियां तोड़ देना चाहती है

तोड़ रही है धीरे धीरे अपने ख़ातिर बने बनाए सारे ढांचे
सिस्टम तोड़ कर अपने दम पर खड़ा होना चाहती है

लड़ जाती है वह परिवार पिता और समाज सब से
मायका ससुराल की पेंडुलम को तोड़ देना चाहती है

बराबरी मांगती नहीं बढ़ कर बराबर होना सीख लिया
समझौते में फंस रोने धोने के बजाय जीना चाहती है

चाहती है अपनी धरती अपना आकाश अपनी सांस
फूल की तरह खिलना पक्षी की तरह उड़ना चाहती है 

बदलती दुनिया में वह अब प्रोडक्ट नहीं फाईटर है 
दुश्मनों को ज़मींदोज़ कर आकाश में हंसना चाहती है

[ 26 जून , 2016 ]

1 comment:

  1. कमाल के शेर हैं ... जिन्दगी का सरोकार लिए ...

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