Thursday 13 October 2016

ठाकुर साहब

ठाकुर साहब

 इंद्र भूषण सिंह


ठाकुर साहब को मेरे फार्म पर रहते लगभग बीस साल हो गये पर मुझसे यदि कोई उनका पूरा नाम पूछे तो
शायद मै तुरन्त ही न बता पाऊँ. हाँ, थोड़ा याद करके ही शायद उनका पूरा नाम बता पाऊँगा. यह इसी कारण है कि हम  सभी घर वाले, पूरे गाँव वालों की ही तरह हमेशा उन्हें ठाकुर साहब ही कह कर पुकारते रहे. कभी भी किसी ने उनके नाम से उनको नहीं पुकारा. लम्बा चौड़ा शरीर, उम्र लगभग पचास साल, खिचड़ी बाल जिन्हें वे हमेशा काले रंग में डाई किये रहते थे, घनी लम्बी मूंछे, राजपूताना के पुराने राजपूतो की तरह जिन्हें वे मौका बे मौका अपने हाथो से ताव देते रहते थे, यही उनके व्यक्तित्व का परिचय था. 

ठाकुर साहब का मूल निवास, सीतापुर के रेऊसा क्षेत्र के किसी गाँव का था. मेरे एक मित्र ने एक बार बताया कि उस क्षेत्र को गांजर का इलाक़ा कहा जाता है, जहाँ के आदमियों की शादी जल्दी नहीं होती. मेरे पूछने पर उन्होंने कारण बताया कि उस क्षेत्र के आदमी बैल होते है और इसीलिये वहां के लोगों से बाहरी लोग अपनी लड़कियों का विवाह नहीं करते.

 इंद्र भूषण सिंह
ओह, मै थोड़ा क्रम गलत कर गया. मुझे ठाकुर साहब के परिचय के पहले यह बताना चाहिए था कि मेरा परिचय ठाकुर साहब से कैसे और कब हुआ. ठाकुर साहब उन्नीस बीस साल की उम्र में ही अपने भाई के साथ एक क़त्ल के मुकदमे में फँस गये. पता नहीं कि फँस गये या कर ही डाला हो, पर दोनों भाइयो को आजीवन कारावास की सज़ा भी हो गयी जिसमे वो लगभग पांच सालो से जेल में थे. अपील किसी और वकील ने दाखिल की थी पर ज़मानत नहीं हो पायी थी. तब उनके किसी रिश्तेदार ने मुझे उनका वकील किया. मेरे थोड़े से प्रयत्न से उन दोनों भाइयो की ज़मानत हो गयी, जेल से छूटने के बाद पहली बार वो मुझसे मिलने आये. उस समय उनकी आयु लगभग तीस वर्ष रही होगी. एक सफ़ेद फटा पायजामा, पुराना कुर्ता, चप्पल पहने जब वो मुझसे मिले तो उन्होंने बताया कि उनकी आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि वो मेरी फीस दे पाये. बताया कि खेती बारी दोनों भाइयो के जेल में रहने के कारण पूरी तरह बर्बाद हो चुका थी. बड़े भाई की शादी हो चुकी थी, उनकी पत्नी व तीन लड़कियाँ थी, जिनकी गरीबी के कारण भूखो मरने की हालत थी. वो स्वं बिलकुल पढ़े लिखे नहीं थे. जोड़ घटाना भी नहीं आता था. मुक़दमे व जेल में रहने के कारण उनका विवाह नहीं हुआ था. उन्हें पता था कि शहर केसमीप ही मेरा एक फार्म है. उन्होंने मुझसे विनती की कि उनको फार्म पर खेती करने के लिये रख लिया जाये. मेरा फार्म शहर से कुल बीस किलोमीटर हाईवे पर ही है. हाईवे की दूसरी ओर एक गाँव है जिसमे मुख्यतः पासी समुदाय के लोग रहते है, एक दो घर पंडितो के भी है जो हमेशा पासियो से डरे रहते है. गाँव वाले अक्सर मेरे फार्म पर भी नुकसान पहुंचा देते थे. मुझे भी एक विश्वसनीय व्यक्ति की जरूरत थी जो मेरे फार्म पर खेती आदि का काम को अच्छी तरह से देखभाल कर सके. मैंने उन्हें वहां रख लिया.

ठाकुर साहब को मैंने एक मेनेजर के रूप में रखने की पेशकश किया था पर वो तो एक मेहनतकश किसान थे. मजदूरों के साथ स्वयं फावड़ा लेकर हमेशा खेत में जुटे रहते थे. मैंने फार्म पर कार्य करने वालो के लिये पक्के कमरे बनवा रखे है पर ठाकुर साहब को पक्का कमरा पसंद नहीं आया और उन्होंने उसी से सटे हुये अपने हाथो से खूबसूरत सी झोपड़ी बनायी और उसी में रहने लगे. मेरे द्वारा दी हुई टीवी लगाकर रात में रामायण देखते थे. शुद्ध शाकाहारी थे. खुद अपना बनाया खाते थे. कंठी पहन रखी थी और नहाने के बाद हनुमान चालीसा पढ़ते थे. चमार, पासी, रैदास आदि से पूरी तरह से छुआ छूत का भेद रखते थे. पुराने नौकर जो रैदास था उसे कुछ ही दिनों में बिदा कर दी. स्वयं इतना मेहनत करते कि अपने खाने पीने की भी सुध नहीं रखते थे. नतीज़ा, कुछ ही वर्षो में मेरी खेती बगल के सरदारों के खेती से मुकाबला करने लगी.

 फार्म पर जो निठल्ले आकर दिनभर बैठे रहते थे, उन्होंने धीरे धीरे आना बंद कर दिया. फार्म के चारो ओर कांटे की तार का बाड़ खड़ा हो गया. एक टीन पर हाथ से लिखा एक बोर्ड बाहर टांग दिया गया जिस पर लिखा था, “यह वकील साहब का फार्म है. बिना अनुमति प्रवेश करने वाले को बिना चेतावनी गोली मार दी जायेगी.” एक गाय और एक भैस भी पाल ली  गयी, जिसे ठाकुर साहब खुद ही खिलाते थे. जब कभी फार्म पर जाता, हरी भरी खेती देख कर आनन्द आ जाता. दूध देने वाले एक गाय व एक भैंस का मालिक होने के बावजूद यदि मुझे एक गिलास दूध पीने को नहीं मिलता तो भी मुझे कोई भी फर्क नहीं पड़ता. मै खुश हूँ कि जाने पर मेरे खेत हरे भरे मिलते चाहे उस खेती से मुझे कोई फायदा न भी हो. मै खुश हूँ कि ठाकुर साहब खुश है. उस इलाके के लोग कहते है कि वकील साहब की खेती बहुत अच्छी होती है.

 बगल के गाँव में एकमात्र पढ़ा लिखा लड़का रणजीत जो एक पासी परिवार का था, वो अक्सर आकर मेरे पास बैठ जाता और गाँव इलाके की खबर देता रहता. वह भी मेरे खेती की तारीफ करता.

एक दोपहर जब मै  फार्म पर पहुंचा तो देखा कि एक स्त्री जिसकी आयु लगभग पैंतीस साल की होगी, वह चूल्हे पर खाना बना रही थी. उसके चार बच्चे बीस साल से पांच साल के, वे वही खेल रहे थे. ठाकुर साहब हमेशा की तरह सामने खेत में पानी चला रहे थे. मै उस स्त्री या उसके किसी बच्चे में किसी को नहीं जानता था सो सोचा की शायद ठाकुर साहब ने गाँव के किसी स्त्री को अपना खाना बनाने के लिए रख लिया है. परन्तु, कुछ ही दिनों बाद रणजीत ने दबी जुबान में बताया कि भैय्या यह संतलाल पासी की पत्नी है. यह और इसका पूरा परिवार अब फार्म पर ही रहता है, सिर्फ रात में सोने अपने घर जाता है. यही पूरे परिवार का खाना पीना ठाकुर साहब के साथ ही होता है. मै आश्चर्य में पड़ गया. तब उसने बताया कि यह और इसका पति सभी आपके फार्म की खेती में पिछले कई सालो से मजदूरी करते थे. इधर कुछ महीने पहले ठाकुर साहब की आँख इस औरत से लड़ गयी, ठाकुर साहब की कंठी टूट गयी और पूरा परिवार यहाँ पहुँच गया.

मैंने भी वास्तविकता को सकारात्मकता में स्वीकार किया. पहले मेरे घर के सभी लोग उस स्त्री को संतलाल की दुलहिन कह कर संबोधन करते थे, फिर धीरे धीरे मजाक में ही उसे ठकुराईन कह कर सम्बोधन करने लगे, जिसका वह या ठाकुर साहब या उसके परिवार का कोई सदस्य बुरा नहीं मानता. संतलाल प्रातः ही अपनी पत्नी व सारे बच्चो को लेकर फार्म पर आ जाता था, सभी चाय पीते थे, कुछ नाश्ता करते थे और यदि फार्म पर मजदूरी का कार्य रहता तो वही मजदूरी करते, वरना कहीं और मजदूरी करने चले जाते. दोपहर में फिर भोजन के समय आ जाते और पूरा परिवार ठाकुर साहब के साथ बैठ कर भोजन करते फिर काम पर चले जाते. रात्रि भोजन उपरान्त पूरा परिवार अपने घर चला जाता, अगले दिन प्रातः फिर से आने के लिये. यही क्रम चलता रहता. 

ठाकुर साहब के आने के बाद चोर उचक्के जो कभी कभार आकर आम या लीची आदि पर हाथ साफ़ कर जाते थे, वो भी आना बंद कर दिये. गाँव का एक बहुत दबंग किस्म का व्यक्ति था छोटेलाल, जिससे पूरा गाँव डरता. कई बार कई लोगो को वह पीट चुका था. उसका आतंक पूरे गाँव में था. कभी किसी के बाग़ में घुस कर फल आदि तोड़ लेना, किसी को अकारण पीट देना उनके लिये आम बात थी. परन्तु छोटेलाल मेरी बहुत इज्ज़त करता. यहाँ तक कि कभी उनके सामने मेरी कोई बुराई करने की भी हिम्मत नहीं कर पाता. एक दिन पता नहीं क्या हुआ कि किसी बात पर वो ठाकुर साहब से गुस्सा गया और एक बड़ा सा बल्लम लेकर, फार्म के सामने के सड़क पर खड़े होकर ठाकुर साहब को धमकी देते हुए उन्हें भद्दी भद्दी गालियां  देने लगा. ठाकुर साहब रोज़ की तरह खेत में काम करते रहे और ठकुराइन अपना खाना बनाती रही. दोनों बहुत देर तक छोटेलाल की गालियों को सुनते रहे, और छोटेलाल वही सड़क पर से ही पैंतरे बदल बदल कर, बल्लम को लहरा लहरा कर ठाकुर साहब को गालियाँ देता रहां. थोड़ी देर में ठाकुर साहब फावड़ा छोड़ कर अपने झोपड़ी में गये और बड़ी सी तीर धनुष निकाल कर छोटेलाल की तरफ यह कहते हुए ललकारा कि भागना नहीं छोटेलाल, मै आ रहा हूँ और तीर धनुष उन्होंने छोटे लाल की ओर तान दिया. छोटेलाल ने ठाकुर साहब का तेवर देखा और अपनी लुंगी ऊपर उठा कर गाँव की ओर सिर पर पैर रख कर भागे. उस दिन से छोटेलाल का सारा रौब गाँव वालों पर ख़त्म हो गया. इस घटना का पूर्ण वर्णन मेरे फार्म पर जाने पर रणजीत ने चटकारे ले ले कर सुनाई. मेरे यह पूछने पर कि आखिर छोटेलाल की ठाकुर साहब से क्या रंजिश हो गयी, रणजीत ने बताया की ठाकुर साहब से पहले वही तो ठकुराईन के प्रेमी थे.

एक जाड़े की दोपहर में फार्म पर पहुँचने पर मैंने एक अलग नज़ारा देखा. एक कुर्सी पर एक अधेड़ नेता टाइप का व्यक्ति खादी का कुर्ता पायजामा सदरी पहने बैठा था. उसी के बगल में चारपाई पर ठाकुर साहब बैठे थे. एक लाठी लिये वहीं छोटेलाल खड़े थे. संतलाल भी वही जमीन पर बैठे थे. ठकुराईन उस नेता टाइप के व्यक्ति को कप प्लेट में चाय बना कर पिला रही थी और उस नेता के ही पैरो के पास जमीन पर ही बैठी थी. किसी बात पर सभी हँस रहे थे. मै अपनी कार से उतर कर उन लोगों को नज़र अंदाज़ कर फार्महाउस के कमरे में चला गया. मेरे लिये भी तुरंत चाय आ गयी. थोड़ी ही देर में रणजीत आ गया जिसे मैंने कमरे में ही बुला लिया. मैंने उत्सुकतावश उससे नेता जैसे व्यक्ति के बारे में पूछा तो रणजीत ने मेरी अज्ञानता पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए बताया कि वह उसी गाँव के पंडित गुलाब तिवारी है, कल ही तो जेल से चौदह साल बाद छूट के आये है. मुझे याद आ गया कि गुलाब तिवारी ने गाँव के ही किसी व्यक्ति का क़त्ल कर दिया था जिसके लिए उन्हें आजीवन कारावास की सजा हुई थी और जब उनकी अपील हाई कोर्ट में बहस हो रही थी तो उनके भाई को लेकर रणजीत मेरे पास आया था. उनका भाई उनके वकील के बहस से संतुष्ट नहीं था तो वह मुझे चाहते थे कि मै बहस कर दूँ पर मैंने किसी वकील के बहस के मध्य बहस करने से मना कर दिया था. मैंने रणजीत से और भी उत्सुकतावश पूछा  कि वो फार्म पर क्यों आया है तो रणजीत ने मुस्कुराते हुए बताया कि पंडित जी ठकुराईन के, छोटेलाल से पूर्व के प्रेमी है. मैं मन ही मन सोचने लगा कि यह स्वीकार्यता अधिक दिनों तक तो नहीं चलेगी और निश्चित तौर पर किसी न किसी दिन खून खराबा हो जाएगा. 

थोड़े ही दिनों बाद रणजीत ने सूचना दी कि फार्म पर लाठी यानी छोटे लाल और खादी यानी पंडित गुलाब तेवरी पूर्ण रूप से प्रतिबंधित हो गये हैं और पूरे साम्राज्य पर ठाकुर साहब का एकक्षत्र शाशन स्थापित हो चुका है. उसने बताया की पता नहीं कि क्या हुआ कि एक दिन ठाकुर साहब ने अपनी मूंछो पर हाथ फेरते हुए एक अद्धी बन्दूक निकाल कर छोटेलाल और गुलाब तिवारी को दिखाया और आपका बोर्ड पढ़ा दिया जिस पर लिखा था, “यह वकील साहब का फार्म है. बिना अनुमति प्रवेश करने वाले को बिना चेतावनी गोली मार दी जायेगी.” अब इस व्यवस्था से सबसे ज्यादा खुश संतलाल हैं.

[ इंद्र भूषण सिंह इलाहाबाद हाई कोर्ट के लखनऊ बेंच में सीनियर एडवोकेट हैं । इंद्र भूषण सिंह से उन के मोबाइल नंबर 09415011163 पर किया जा सकता है। ]

Thursday 6 October 2016

इतना विष भी तुम कहां से लाती हो शगुफ़्ता ज़ुबेरी


हाय शगुफ़्ता ज़ुबेरी
कहां हो , कैसी हो
मंथरा मोड में अभी भी हो
कितनी जगह इत्र लगा कर
अपने जहर का दरिया बहा चुकी हो 
कितने घरों में आग लगा कर नहा चुकी हो 

कभी मंथरा-कैकेयी , कभी सूर्पनखा-सुरसा
अपने घर में भी इतनी भूमिकाओं में कैसे रहती हो 
तुम इतना परेशान आख़िर क्यों रहती हो
फ़ेसबुक पर फर्जी प्रोफाईल गढ़-गढ़ कर
चुड़ैल बन कर टहलती-फिरती
कितने पुरुषों को झांसे में फांस चुकी हो

बताना अपना हालचाल
किसी और फर्जी प्रोफाईल से
जैसे फला-फला लेखक-लेखिका की सेक्सचर्या

उस दिन अभी तुम यही तो पूछ रही थी
बेधड़क , बेअंदाज़ , फुल बेशऊरी से
लेकिन तुम्हारी बेशऊरी से जैसे ही तुम्हें पहचान लिया
तुम भाग गई सर्वदा की तरह
फिर आई नई प्रोफाइल से फिर और फिर और
वाह , कितनी ऊर्जा है तुम में डाह की 
सब को परेशान रखने की चाह की

इतनी निगेटिविटी , इतना समय , इतना हिसाब 
कहीं अदा का कबाब , कहीं  शबाब की बिरयानी बेहिसाब
वाह-वाह की चटनी में चैट का डंक तुम कैसे बरसाती हो 
नदी की तरह बातों में बल बहुत खाती हो
ख़ुद से भी बाज-बाज जाती हो
कि बोलते-बोलते ख़ुद नीली पड़ जाती हो 
इतना विष भी तुम कहां से लाती हो शगुफ़्ता ज़ुबेरी
तुम औरत हो कि कांटों से भरी झाड़   

बाहर लाल सलाम , घर में भजन आरती  
इन के , उन के कहे सूत्र वाक्यों के सार
कैसे जी लेती हो  शगुफ़्ता ज़ुबेरी यह कंट्रास्ट 
खाती रहती हो घूम-घूम कर बातों की लात

मंथरा मोड में इस कदर सर्वदा कैसे रह लेती हो 
किसी इत्र की सनक है यह या सटके हुए दिमाग की हनक
इतने सारे कांटों की झाड़ पर पागलों की तरह चढ़ कैसे लेती हो 
शगुफ़्ता ज़ुबेरी मन में इतने कार्बन भर कर भी तुम जी कैसे लेती हो